रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: राम की जीत हुई, लेकिन अल्लाह नहीं हारा
एक दिन पहले दिल्ली में था। घर से फोन आया कि रात को ठीक से आना, कल राम मंदिर पर फैसला आएगा। फैसला भगवान का और अदालत इंसान की। गजब संयोग था। फैसला आया राम की जीत हुई लेकिन अल्लाह भी नहीं हारा। धर्म के ठेकेदार हार गये। कल का दिन शांतिपूर्ण गुजर गया। हिन्दू हो या मुस्लिम हो, सबने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मंजूर कर लिया। कहीं सड़क पर कुछ नहीं हुआ। धर्म के ठेकेदार भले ही कुछ न कह रहे हों, लेकिन परेशान होंगे कि अब मंदिर का मुद्दा गया तो दुकान में क्या सौदा बचा? 1992 में मैं कालेज में था। तब दिल्ली में था। बाबरी मजिस्द ढहाने के बाद आतंक का माहौल, धारा 144 और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए नरसंहार को याद कर दहशत थी।
धर्म के ठेकेदारों की दुकान बंद हो गयी।
– जनता सयानी हो गयी, अब मंदिर बने या मस्जिद उसे परवाह नहीं
– गजब! इंसान की अदालत में भगवान का फैसला
पर बात संभल गयी। चुनाव आते गये और चले भी गये। दो लोकसभा सीटों से भाजपा प्रचंड बहुुमत से दो बार केंद्र में आ गयी, लेकिन मंदिर का मुद्दा भाजपा और कुछ धार्मिक संगठनों के लिए कामधेनु बना रहा। उधर, ओवेसी समेत मुस्लिमों के कई संगठन इसी आड़ में चल रहे थे। बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय नौजवान था, युवा हुआ और अब प्रौढ़ता की ओर हूं। पत्रकार बनने के बाद धर्म की यह घिनौनी राजनीति समझ में आने लगी थी। मुद्दा जीवित है तो वोट जीवित हैं, यही राजनीति है। मुद्दा कोई नहीं चाहता है कि हल हो। लेकिन हमारे देश की लोकतंत्र की सबसे बड़ी अदालत ने भगवान का फैसला कर लिया। अब मुद्दा खत्म। धर्म के ठेकेदारों की दुकान भी बंद। अब नई जगह तलाशनी होगी। जनता सयानी हो गई है। तो आओ, अब लौट चले देश में चल रही मंदी की ओर, बढ़ रही बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या और प्रदूषण से हो रहे ग्लोबल वार्मिंग की ओर। धरती बचेगी, तो ही तो धर्म और भगवान बचेंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं. वे उत्तर जन टुडे के कार्यकारी संपादक है)