मंदी की आहट के बीच रिजर्व बैंक के लिए ब्याज दरें बढ़ाने की मजबूरी, क्या सस्ती हो पाएगी आपकी EMI?
दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंकाओं से घरेलू इकोनॉमी पर दबाव देखने को मिल रहा है. ग्लोबल संकेतों को देखते हुए दुनिया भर की संस्थाएं ग्रोथ अनुमानों को संशोधित कर रही हैं. इसकी वजह केंद्रीय बैंकों के द्वारा दरों में बढ़ोतरी है. जिसका दबाव दुनिया भर की ग्रोथ पर दिख रहा है और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी दबाव है. फिलहाल रिजर्व बैंक ने साफ कर दिया है कि उसके लिए महंगाई को नियंत्रित करना सबसे बड़ी चिंता है इसी वजह से वो मंदी की आशंका के बावजूद भी दरों को बढ़ा रहा है. अगले महीने रिजर्व बैंक की पॉलिसी समीक्षा बैठक है. संकेतों की माने तो अगली पॉलिसी समीक्षा में दरों में राहत की बात तो भूल ही जाएं,आगे भी दरों में बढ़ोतरी की ही संभावना ज्यादा है.
क्या है दरों में बढ़ोतरी को लेकर अनुमान
मूडीज का अनुमान है कि रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में लाने और विनिमय दर को समर्थन देने के लिये रेपो दर में 0.50 प्रतिशत के आसपास और वृद्धि कर सकता है. वहीं गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि रिजर्व बैंक अपनी दरों में लगातार बढ़त जारी रखेगा. ब्रोकरेज ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में रेपो दर में 0.50 अंक और फरवरी, 2023 की बैठक में 0.35 प्रतिशत की वृद्धि कर सकता है. इससे अगले साल फरवरी तक रेपो दर 6.75 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी. यानि साफ है कि आने वाले समय में आपकी ईएमआई और बढ़ सकती हैं.
क्यों बढ़ेगी ब्याज दरें
दरअसल ऊंची ब्याज दर से ग्रोथ पर असर की संभावना है. हालांकि हाल में हुई दरों में बढ़ोतरी के बाद भी भारत की ग्रोथ दुनिया भर की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक बनी रहने का अनुमान है. इसी वजह से रिजर्व बैंक अपना पूरा जोर महंगाई दर को 6 प्रतिशत से नीचे लाने पर लगा रहा है. पिछले महीने ही आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य आशिमा गोयल ने कहा था कि बार-बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी से महंगाई पर काबू पाने में मदद मिलेगी, उन्होने आगे कहा कि नीतिगत दरों में बढ़ोतरी ने महामारी के दौरान कटौती के रुख को बदल दिया है, लेकिन वास्तविक ब्याज दर अभी भी इतनी कम है कि इससे ग्रोथ में रिकवरी को कोई नुकसान नहीं होगा.