खुलासाः तो भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बन गया एससीईआरटी!
देहरादून। एससीईआरटी के अधिकारियों की गिद्ध दृष्टि भारत सरकार के पैसों पर एक टक ऐसी लगी है कि पैसों के अलावा इन्हें कुछ भी नज़र नहीं आ रहा। असेसमेंट सेल इसका ताज़ा उदाहरण है, जिसके तहत प्रदेश को चालीस लाख रुपए की धनराशि स्वीकृत है। महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा द्वारा इस सेल के गठन को अनुमोदन भी दे दिया गया है।
बावजूद इसके अपर निदेशक एससीईआरटी द्वारा सोमवार को संयुक्त निदेशक शिक्षक शिक्षा, आशा पैन्यूली को मौखिक आदेश दे कर वित्त अधिकारी से असेस्मेंट सेल के कार्यक्रमों हेतु स्वीकृति के लिए भेजी गयी जबकि अपर निदेशक को अधिकारिक तौर पर ज्ञात था कि इस सेल का गठन दूसरी फ़ाइल में महानिदेशक के अनुमोदन के साथ हो चुका है।
दरअसल भारत सरकार प्रतिवर्ष एससीईआरटी, डायट और समग्र शिक्षा को शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता सुधार व अन्य मदों में करोड़ों रुपये की धनराशि देती है। अकेले एससीईआरटी ही पिछले वर्ष से प्रतिवर्ष एक करोड़ से अधिक की धनराशि व्यय करती है। ऐसे में कमीशनखोरी का खेल चरम पर रहता है। महानिदेशक तथा निदेशक के आदेशों की धज्जियाँ बड़ी ही सरलता और सहजता से उड़ा दी जाती हैं। एससीईआरटी के अंदर कार्य विभाजन ही इस प्रकार किया जाता है कि कमीशनखोरी का नेटवर्क आसानी से काम कर सके। इसके लिए कोशिश की जाती है कि अधिकाधिक संख्या में बाहरी कर्मियों को सम्बद्ध किया जाए, जिससे कि वे उच्चाधिकारियों के आदेशों का पालन बिना विरोध के कर सकें।
इस प्रकार भ्रष्टाचार के तंत्र को पोषित किया जाता है। यहाँ तक कि एससीईआरटी के पूर्व में गठित विभागों को भी ध्वस्त कर दिया गया है। एमएमई तथा ऐन्यूअल ग्रांट कुछ ऐसे मद हैं जिनमें लाखों का वारा न्यारा होता है। कमीशनखोरी इस हद तक परिषद में चलती है कि दुकानदार परिषद में आकर खुद ही विभाग के जेम पोर्टल को संचालित कर सेंधमारी करते हैं। क्योंकि पैसा भारत सरकार का रहता है इसलिए राज्य सरकार के अन्य अधिकारियों को इन संस्थाओं द्वारा किए जा रहे व्यय की अधिक जानकारी नहीं होती है और न ही रूचि रखते हैं। जबकि जिन अधिकारियों के मुंह भ्रष्टाचार का स्वाद लग चुका होता है वे इन संस्थाओं का मोह नहीं छोड़ पाते।
वित्तीय वर्ष 2022-23 में भी असेस्मेंट सेल, एमएमई तथा ऐन्यूअल ग्रांट आदि मदों में लाखों रुपए स्वीकृत हैं। जिन पर गिद्द दृष्टि नियम क़ानूनों को ताक पर रखने को लालायित है, ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता के लिए जवाबदेह संस्थान की ऐसी हालत प्रदेश की शिक्षा को गर्त में ले जाने के लिए प्रतिबद्ध प्रतीत होती है।