September 22, 2024

भारतीय बाजार और अर्थव्यवस्था में मंदी की आहट, कैसे बच पाएंगे हम?

साल 2018 के अंत तक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जो परस्पर विरोधी संकेत आ रहे थे, वे अब साफ हो चुके हैं. हर तरह के आर्थिक संकेतों से अब यह साफ लग रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती या मंदी की आहट है और हालात के दिनो दिन बदतर होते जाने की आशंका भी दिख रही है.

कोई भी अर्थव्यवस्था चार तरह के इंजनों के बलबूते दौड़ती है- 1. निजी निवेश यानी नई  परियोजनाओं में निजी क्षेत्र का निवेश, 2. सार्वनिक खर्च यानी बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं में सरकार द्वारा किया जाने वाला निवेश, 3. आंतरिक खपत यानी वस्तुओं और सेवाओं की खपत, 4. बाह्य खपत यानी वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात.

तो पिछले साल के अंत तक तो दो इंजन सामान्य गति से चलते दिखे, लेकिन दो इंजन कई साल पहले ही ठप पड़ चुके हैं. पहला, सरकार बुनियादी ढांचे में संसाधन झोंक रही थी, यानी सार्वजनिक निवेश स्वस्थ दर से बढ़ता रहा. दूसरा, जीएसटी और नोटबंदी के झटकों के बाद भी ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेबल, एफएमसीजी आदि की खपत में 15-16 फीसदी की स्वस्थ बढ़त देखी गई.  

अर्थव्यवस्था के दो इंजन की हालत बेहद खराब

लेकिन दूसरे दो इंजनों निर्यात और निजी निवेश की हालत पिछले कई साल से खराब है. साल 2013-14 में भारत का निर्यात 314.88 अरब डॉलर के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया था, लेकिन 2015-16 में निर्यात सिर्फ 262.2 अरब डॉलर का हुआ. साल 2017-18 में इसमें थोड़ा सुधार हुआ और आंकड़ा 303.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया, हालांकि यह अब भी 2013-14 के स्तर से कम है.

चौथा और सबसे बदहाल इंजन है निजी निवेश का. वित्त वर्ष 2018-19 में निजी निवेश प्रस्ताव सिर्फ 9.5 लाख करोड़ रुपये के हुए, जो कि पिछले 14 साल (2004-05 के बाद) में सबसे कम है. साल 2006-07 से 2010-11 के बीच हर साल औसतन 25 लाख करोड़ रुपये का निजी निवेश हुआ था. यह आंकड़ा इस लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है कि कुल निवेश में निजी निवेश का हिस्सा दो-तिहाई के करीब होता है.

चारों इंजन दुरुस्त नहीं रह गए

लेकिन यह सब पिछले साल तक की बात है. अब तो ऐसे संकेत भी मिल रहे हैं कि घरेलू खपत भी गिरावट आ रही है. यानी अब तीन इंजन की हालत खराब हो चुकी है और कोई भी अर्थव्यवस्था सिर्फ एक इंजन के भरोसे नहीं चल सकती. यही नहीं, चौथे इंजन यानी सरकारी खर्च की गति भी कुछ अच्छी नहीं रह गई है. पिछले वित्त वर्ष के अंत तक राजस्व में लक्ष्य से कम बढ़त और वित्तीय घाटे के बेकाबू होने के बाद सरकार ने सरकारी खर्चों पर भी अंकुश लगाना शुरू कर दिया.  साल 2018-19 में यात्री कारों की बिक्री में सिर्फ 3 फीसदी की बढ़त हुई है, जो पिछले पांच साल का सबसे कम स्तर है.

अर्थव्यवस्था के अन्य इंडिकेटर भी नीचे की ओर

अर्थव्यवस्था के अन्य महत्वपूर्ण आंकड़े भी अच्छे नहीं हैं. साल 2018-19 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बढ़त सिर्फ 6.98 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि 2015-16 में यह करीब 8 फीसदी रह गया है. ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) भी 8.03 फीसदी के मुकाबले घटकर 6.79 फीसदी रह गया है. औद्योगिक उत्पादन को दर्शाने वाले सूचकांक आईआईपी में दिसंबर, 2018 की तिमाही में 3.69 फीसदी की बढ़त हुई जो कि पिछले 5 तिमाहियों में सबसे कम है. जनवरी में तो आईआईपी में महज 1.79 फीसदी की बढ़त हुई. फरवरी में आईआईपी में सिर्फ 0.1 फीसदी की बढ़त हुई जो पिछले 20 महीने में सबसे कम है.

औद्योगिक गति‍विधियों का एक सूचकांक बिजली उत्पादन भी होता है. साल 2018-19 में बिजली उत्पादन में सिर्फ 3.56 फीसदी की बढ़त हुई जो पांच साल में सबसे कम है. साल 2018-19 में कॉरपोरेट जगत की बिक्री और ग्रॉस फिक्स्ड एसेट भी पांच साल में सबसे धीमी गति से बढ़ी है.

नौकरियों के सृजन के मोर्चे पर भी गति काफी धीमी है. ईपीएफओ के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2018 से अब तक औसत मासिक नौकरी सृजन में 26 फीसदी की गिरावट आई है. सीएमआईई का कहना है कि साल 2017-18 में कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन में औसतन 8.4 फीसदी की बढ़त हुई है, जो पिछले 8 साल में सबसे कम है. साल 2013-14 में यह 25 फीसदी तक था.

क्या इस संकट से भारत बच पाएगा

इसके लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है. इसके लिए दुनिया भर में एक ही तरह का फॉर्मूला अपनाया जाता है. जब आंकड़े नीचे जा रहे हों तो सरकार को सार्वजनिक खर्च बढ़ाना पड़ता है. ऐसे सार्वजनिक खर्च की बदौतल अमेरिका भी मंदी से बाहर आया था. भारत को भी नए जोश के साथ यह करना होगा. अर्थव्यवस्था अगर लगातार नीचे की ओर जाने लगेगी तो फिर आर्थ‍िक पैकेज की जरूरत पड़ेगी. हालांकि अभी वह नौबत नहीं आई है. ब्याज दरें घटाकर रिजर्व बैंक ग्रोथ को बढ़ावा दे सकता है. साथ ही भारत को अपनी निर्यात नीति पर पुनर्विचार करना होगा ताकि वैश्विक आर्थिक तरक्की में भागीदार बन सके.

आंकड़े दे रहे गवाही

– साल 2018-19 में GDP में बढ़त सिर्फ 6.98 फीसदी रहने का अनुमान है

–  फरवरी में आईआईपी में सिर्फ 0.1 फीसदी की बढ़त हुई जो पिछले 20 महीने में सबसे कम है

– साल 2018-19 में बिजली उत्पादन में सिर्फ 3.56 फीसदी की बढ़त हुई जो पांच साल में सबसे कम है

– साल 2018-19 में यात्री कारों की बिक्री में सिर्फ 3 फीसदी की बढ़त हुई है, जो पिछले पांच साल का सबसे कम स्तर है.

-2018 की सितंबर और दिसंबर की तिमाही में पेट्रोलियम खपत में पिछले सात तिमाहियों के मुकाबले सबसे कम बढ़त हुई

-साल 2018-19 में कॉरपोरेट जगत की बिक्री और ग्रॉस फिक्स्ड एसेट भी पांच साल में दूसरी सबसे धीमी गति से बढ़ी है.

-अप्रैल के पहले पखवाड़े में बैंक कर्ज में 1 लाख करोड़ रुपये की गिरावट आई है

-तैयार स्टील का उत्पादन पिछले पांच साल में दूसरा सबसे कम रहा

-ईपीएफओ के मुताबिक, अक्टूबर 2018 से अब तक औसत मासिक नौकरी सृजन में 26 फीसदी की गिरावट आई है.


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com