राजकीय शिक्षक – “सूत न कपास जुलाहे में लट्ठम-लट्ठा”
-क्या कहता है राजकीय शिक्षक संघ का अधिकर और क्या है शिक्षक की भूमिका।
–एक जिम्मेदार मीडिया संस्थान होने के नाते हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम अफवाओं की खबरों से हटकर आप को सही संघ के संविधान के महत्वपूर्ण अंश आप पाठकों के लिए उपलब्ध करवाएं।
-यह विडम्बना है कि एक प्रतिष्ठित शिक्षक संघ के सदस्य अपने संघ के संविधान से परिचित नहीं है
शक्ति सिंह बर्त्वाल
देहरादून। प्रदेश के सबसे बडे शिक्षक संघ चुनाव को लेकर पूरी तैयारी हो चुकी है। प्रत्याशियों ने भी वोटरों को लुभाने के लिए पूरा दम राजधानी से लेकर प्रस्तावित राजधानी तक लगा दिया है, लेकिन इन सब के बीच दिलचस्प बात ये है कि चुनाव का एजेंडा और मुदृा वोटरों और प्रत्याशियों के मुख्य मुददे से गायब है। जाहिर है शिक्षक का काम समाज सुधार का है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से शिक्षक संघ का चुनाव राजकीय शिक्षक संघ के उददेश्यों से हटकर एक दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप तक ही सीमित रह गया है। वहीं इन सबके बीच वोटर की स्थिति “सूत न कपास जुलाहे में लट्ठम-लट्ठा” की हो रखी है।
अधिकांश वोटरों को मालूम ही नहीं है कि राजकीय शिक्षक संघ का अधिवेशन क्यों बुलाया जाता है और संघ की परिकल्पना क्यों की गयी थी। इतना ही नहीं अधिकांश शिक्षक तो यह भी नहीं जानते कि संघ का चुनाव कैसे होता है और संघ के पदाधिकारियों और शिक्षक समाज से जुडे अध्यापकों के पास क्या अधिकार है। इन सब बातों का ध्यान रखते हुये दस्तावेज इंडिया राजकीय शिक्षक संघ के ढांचे को आप की जानकारी और आप की जागरूकता के लिए आप के सामने लेकर आया है। जाहिर है जबतक संघ से जुडे सदस्यों को ही यह मालूम नहीं होगा कि संघ है क्या और संघ की क्या भूमिका होती है और उस संघ में उनकी क्या स्थिति है।
यह विडम्बना है कि एक प्रतिष्ठित शिक्षक संघ के सदस्य अपने संघ के संविधान से परिचित नहीं है चूँकि एक जिम्मेदार मीडिया संस्थान होने के नाते हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम अफवाओं की खबरों हटकर आप को सही संघ के संविधान के महत्वपूर्ण अंश आप पाठकों के लिए उपलब्ध करवाएं, जिससेकि आप पाठकों का भी संघ एंव उसके पदाधिकारियों के कार्यों एंव उनके कर्तव्य व अपने अधिकारों को लेकर बनी भ्रांतियों का निराकरण हो सके, इसी क्रम में पहली पडताल जारी है
“ राजकीय शिक्षक संघ” को मान्यता प्रदान की गयी थी “
उत्तराखण्ड शासन के शिक्षा अनुभाग- 2 के शासनादेश संख्या – 837/XXIV-2/08-23(1) 2008 के जरिये दिनांक 27-नवम्बर-2008 के अनुसार उत्तर प्रदेश(सेवा संघों को मान्यता) नियमावली-1979 के नियम 3(1)के प्रावधानों के अनुसार एंव उक्त नियमावली में उल्लेखित नियमों / शर्तों के अधीन “ राजकीय शिक्षक संघ” को मान्यता प्रदान की गयी थी l संघ को मान्यता प्राप्त होने केपश्चात “राजकीय शिक्षक संघ, उत्तराखण्ड” का लिखित संविधान संघ के प्रथम प्रांतीय द्विवार्षिक अधिवेशन, राजकीय इंटर कॉलेज, अल्मोड़ा, जनपद-अल्मोड़ा में दिनांक 28-अगस्त-2009 को पारित कर उसी दिन से लागू किया गया l
संघ के संविधान की धारा 3 व 4 में इसके लक्ष्य एंव उद्देश तथा उद्देश्य की पूर्ति के कार्यों का वर्णन किया गया है l जो इस प्रकार है…..
धारा : 3 –लक्ष्यऔर उद्देश्य
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संघ के लक्ष्य और उद्देश्य निम्नवत होंगे :-
(क) संघ के सदस्यों से परस्पर सामाजिक तथा शैक्षिक संपर्क विकसित करना,
(ख) प्रदेश की आवश्यकता के विशिष्ट सन्दर्भ में शैक्षिक समस्याओं का अध्ययन करना और शैक्षिक प्रयोगों को प्रोत्साहित करना,
(ग) संघ के सदस्यों के अधिकारों, विभागीय हितों तथा सुविधाओं की सुरक्षा एंव अभिवृद्धि करना,
(घ) प्रदेश में शिक्षा के विकास हेतु शैक्षिक एंव शैक्षणिक स्तर की स्तर की संगोष्ठियाँ करना तथा शिक्षा उन्नयन करना,
(ङ) संघ के सदस्यों की सेवा, व्यावसायिक दशा एंव कल्याण संबंधी अन्य हितों की देखभाल करना,
(च) आवश्यकता होने पर संघ के सदस्यों की सहायता करना, पुरुष्कार योजना चलाना तथा पात्रों का चयन कर पुरुष्कृत करना l
धारा : 4 –उद्देश्य की पूर्ति
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इस संविधान की धारा 4 उल्लेखित उद्देश्यों की पूर्तिनिम्नलिखित कार्यों द्वारा की जायेगी :-
(क) संघ के सदस्यों की विभिन्न स्तरों पर सभाओं/संगोष्ठियों/अधिवेशनों का आयोजन तथा उनमें पारित प्रस्तावों का क्रियान्वयन
(ख) लिखित प्रत्यावेदनों का प्रस्तुतिकरण तथा आवश्यक होने पर कार्यकारिणी द्वारा निर्धारित विधी से सम्बन्धित अधिकारीयों के समक्ष शिष्ट मण्डल भेजना,
(ग) प्रत्यावेदनों, ज्ञापनों एंव अधिवेशनों/सभाओं/संगोष्ठियों आदि की कार्यवाहियों के प्रकाशन एंव प्रसारण की व्यवस्था,
(घ) इस संविधान के उपनियमों के अधीन संघ के मुखपत्र का प्रकाशन प्रसारण,
(ङ) उपनियमों के अनुसार शैक्षिक प्रदर्शनियों तथा विचार गोष्ठियों का आयोजन,
(च) उपनियमों के अनुसार शैक्षिक एंव शिक्षण विधियों से सम्बन्धित नवीनतम पुस्तकों के लिए एक लघु पुस्तकालय का संचालन,
(छ) शिक्षा के विभिन्न अंगों तथा शिक्षण पद्दतियों पर विद्वानों के व्याख्यानों का आयोजन,
(ज) उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सदस्यों से वार्षिक सदस्यता शुल्क तथा सदस्यों से आवश्यकतानुसार विशेष कोष की स्थापना,
(झ) निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु समय-समय पर अन्य आवश्यक प्रभावकारी कदम उठाना तथा सामूहिक प्रदर्शन, चाक डाउन, हड़ताल आंशिक अथवा पूर्ण हड़ताल आदि वैधानिक कार्यवाहियां l
धारा : 5 सदस्यता
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निम्नलिखित व्यक्ति संघ के सदस्य होंगे :-
(क) प्रदेश के समस्त राजकीय माध्यमिक विद्यालयों/डाईट्स के नियमित अध्यापकों /अध्यापिकाओं चाहे वे संवर्गेत्तर(एक्स केडर) पदों पर स्थानांतरित प्रतिनिधियन अथवा पदोन्नत क्यों न हो गये हों, किन्तु धारणाधिकार अपने मूल संवर्ग में हों, निर्धारित वार्षिक शुल्क देकर सदस्य बन सकते हैं, सदस्यता राशि वापस नहीं होगी l
(ख) शिक्षण संवर्ग में पदोन्नत पाये प्रधानाध्यापक, प्रधानाध्यापिका, वरिष्ठ प्रवक्ता, प्रधानाचार्य,प्रधानाचार्या (जब तक वे प्रदेश के शिक्षा सेवा द्वितीय श्रेणी में आत्म स्थानीय (सबस्टेंसिव) नियुक्ति नहीं पा जाते l
(ग) सदस्यता ग्रहण की अवधि प्रति वर्ष 01 अप्रेल से 31 मार्च तक होगी l
विलम्बत:सितम्बर माह का सदस्यता शुल्क (वार्षिक अभिदान) न देने पर सदस्यता स्वत: ही समाप्त हो जायेगी l किन्तु अपने बकाये का भुगतान करने पर संघ में पुन: सम्मिलित होने का हकदार होगा l
टिप्पणी :-
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1. पंजीकरण प्रक्रिया एंव सदस्यता शुल्क की दरें संघ के संविधान की उपनियमों के अनुसार होंगी l
2. किसी स्थान विशेष के एकाकी सदस्य सीधे जनपदीय शाखा से सम्बद्ध होंगे l
धारा : 6 सदस्यता का लोप
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संघ की सदस्यता निम्नलिखित स्थितियों में समाप्त हो सकती है :-
(क) सदस्यता का त्यागपत्र सम्बन्धित पदाधिकारी / कार्यकारिणी समिति द्वारा स्वीकृत हो जाने पर,
(ख) संघ के विरुद्ध अहितकर व्यवहार, अनुशासनहीनता प्रदर्शित करने पर, जिसका निर्णय कार्यकारिणी करेगी,
(ग) किसी अन्य शिक्षक कर्मचारी संगठन, जिसमें राजनीतिक संगठन भी सम्मिलित हैं की सदस्यता प्राप्त करने पर,
(घ) प्रतिवर्ष सदस्यता शुल्क जमा न करने पर l
धारा : 7 वित्तीय व्यवस्था
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(क) संघ के आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित होंगे :-
1.वार्षिक सदस्यता शुल्क,
2.विशिष्ट कार्यों हेतु प्राप्त सदस्यों से विशिष्ट सहायता धन,
3.संघ के मुखपत्र हेतु नियमानुकूल प्राप्त धन,
4. अन्य विविध प्राप्तियां
(ख) आय व्यय संबंधी प्रमुख शीर्षक निम्नलिखित होंगे :-
1.कार्यालय संबंधी सयोंगिक स्थाई व्यवस्था व्यय,
2.सुचना पत्र कार्यवाहियां आदि का मुद्रण व्यय,
3.यात्रा व्यय,
4.संघ के मुखपत्र का प्रकाशन,
5.अन्य विवध व्यय
टिप्पणी :-
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संघ के विभिन्न कोषों का प्रबन्ध उपनियमावली के अनुसार होगा l
धारा 8 : संगठन एंव प्रबन्ध
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कार्यावधि
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विद्यालय शाखा का कार्यकाल एक वर्ष का होगा l विकासखण्ड, जनपदीय, मण्डलीय एंव प्रतीय कार्यकारिणी का कार्यकाल 02( दो) वर्ष का होगा, अपरिहार्य परिस्थितियों में प्रांतीय कार्यकारिणी का कार्यकाल अधिकतम एक शिक्षा सत्र तक बढ़ाया जा सकता है l सामान्यत:कार्यकाल न बढ़ाया जाये l
कार्यकारिणी
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1. विद्यालय स्तर पर :
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प्रत्येक राजकीय माध्यमिक विद्यालय/ डाईट्स में संघ की एक शाखा होगी जिसका कार्यकाल एक वर्ष का होगा l जिसके निम्नलिखित निर्वाचित पदाधिकारी होंगे l
1. अध्यक्ष,
2. उपाध्यक्ष,
3. मंत्री,
4. संयुक्त मंत्री,
5. कोषाध्यक्ष (कार्यकारिणी द्वारा नामित)
6. आय व्यय निरीक्षक
2. विकास खण्ड स्तर पर :
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उत्तराखण्ड प्रदेश के प्रत्येक जनपद के विकास खण्ड स्तर पर एक विकास खण्ड शाखा होगी, जिसका कार्यकाल दो वर्ष का होगा, विकास खण्ड शाखा की कार्यकारिणी समिति संघ की जनपदीय, मण्डलीय व प्रदेशीय कार्यकारिणी के अधीन विकास खण्ड व्यस्वथा के लिये उत्तरदायी होगी l विकास खण्ड शाखा के निम्नलिखित निर्वाचित पदाधिकारी होंगे l जिसका निर्वाचन विकास खण्ड स्तरीय द्वि वार्षिक अधिवेशन के मतदान द्वारा होगा l
1. अध्यक्ष,
2. उपाध्यक्ष – 2(पुरुष –1, महिला– 1)
3. मंत्री ,
4. संयुक्त मंत्री – 2 (पुरुष– 1, महिला – 1)
5. कोषाध्यक्ष (कार्यकारिणी द्वारा नामित)
6. आय व्यय निरीक्षक,
7. पदेन सदस्य – विकास खण्ड के समस्त विद्यालयों के शाखा अध्यक्ष, मंत्री, विकास खण्ड की कार्यकारिणी के पदेन सदस्य होंगे l
3. जनपदीय स्तर पर :
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प्रत्येक जनपद की समस्त विद्यालय शाखाओं से गठित एक जनपदीय शाखा होगी l जनपदीय शाखा की कार्यकारिणी समिति जो संघ की मण्डलीय तथा प्रदेशीय कार्यकारिणी के अधीन जनपदीय व्यवस्था के लिए उत्तरदायी होगी l जिसमें निम्नलिखित निर्वाचित पदाधिकारी होंगे, जिनका निर्वाचन जनपदीय द्वि वार्षिक अधिवेशन के मतदान से होगा l
1. अध्यक्ष,
2. उपाध्यक्ष – 2(पुरुष –1, महिला– 1)
3. मंत्री ,
4. संयुक्त मंत्री – 2 (पुरुष– 1, महिला – 1)
5. कोषाध्यक्ष (कार्यकारिणी द्वारा नामित)
6. आय व्यय निरीक्षक,
7. संगठन मंत्री – 2 (पुरुष– 1, महिला – 1)
8. पदेन सदस्य – विकास खण्ड के स्तर के अध्यक्षतथा मंत्री जनपदीय की कार्यकारिणी के पदेन सदस्य होंगे l
4. मण्डलीय स्तर पर :
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प्रत्येक मण्डल में जनपदीय शाखाओं से गठित एक मण्डलीय शाखा होगी l मण्डलीय शाखा की कार्यकारिणी प्रदेशीय कार्यकारिणी के अधीन मण्डलीय संगठन आदि की व्यवस्था के लिए उत्तरदायी होगी, जिसमें निम्नलिखित पदाधिकारी होंगे, जिनका निर्वाचन मण्डलीय द्वि वार्षिक अधिवेशन में मतदान से होगा l
1. अध्यक्ष,
2. उपाध्यक्ष – 2(पुरुष –1, महिला– 1)
3. मंत्री,
4. संयुक्त मंत्री – 2(पुरुष –1, महिला– 1)
5. कोषाध्यक्ष (कार्यकारिणी द्वारा नामित)
6. आय व्यय निरीक्षक,
7. संगठन मंत्री – 2 (पुरुष– 1, महिला – 1)
8. पदेन सदस्य – अधीनस्थ जनपदों के जनपदीय अध्यक्ष, मंत्री, इसके पदेन सदस्य होंगे l
5. राज्य स्तर पर :
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राज्य स्तर पर संघ की प्रादेशिक कार्यकारिणी होगी, जो संघ की समस्त प्रदेशीय संगठन व्यवस्था नियंत्रण तथा संघ के उद्देश्यों की पूर्तिके लिए उत्तरदायी होगी l प्रदेशीय कार्यकारिणी परिषद में निम्नलिखीत पदाधिकारी / सदस्य होगें :
1. अध्यक्ष,
2. उपाध्यक्ष –1,
3. महामंत्री,
4. संयुक्त मंत्री –1,
5. कोषाध्यक्ष
निम्नलिखित पदाधिकारियों को कार्यकारिणी की सहायता के लिए मनोनीत किया जायेगा :-
1. संरक्षक
2. प्रांतीय प्रवक्ता
3. प्रधान कार्यालय मंत्री
4. आय व्यय निरीक्षक,
5. पत्रिका संपादक
नोट :-
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निर्वाचित पदों पर यदि महिला संवर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता तो, प्रांतीय कार्यकारिणी को एक महिला उपाध्यक्ष मनोनीत करने का अधिकार होगा l
टिपण्णी :-
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मनोनीत को छोड़कर शेष पदाधिकारियों का निर्वाचन प्रदेशीय अधिवेशन में सम्मिलित होने वाले एतदर्थ अधिकार प्राप्त प्रतिनिधियों द्वारा मतदान प्रक्रिया से किया जायेगा l निर्वाचन समिति में एक प्रधान निर्वाचन अधिकारी तथा दो या दो से अधिक सहायक निर्वाचन अधिकारी होंगे l प्रतिबन्ध यह होगा कि निर्वाचन समिति के सदस्य स्वयं किसी पद के प्रत्यासी नहीं होंगे l
धारा 9. अधिवेशन
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(क) अधिवेशन :- पूर्व अधिवेशन में निर्धारित (अन्यथा कार्कारिणी में बाद में निर्णय) स्थान पर संभवत: फरवरी से पूर्व संपन्न होगा l
(ख) असाधारण अधिवेशन :-
1. कार्यकारिणी के कम से कम 10 सदस्यों अथवा पदाधिकारियों के अनुरोध पर कार्यकारिणी के निर्णयानुसार महामंत्री द्वारा आहूत किया जाएगा l
2. सभागत प्रतिनिधियों / सदस्यों के स्वागत तथा आवास आदि का प्रबन्ध संघ के उपनियमों के अधीन निमित्त स्वागत समिति एंवकार्यकारिणी करेगी l
3. सामान्यतया संघ के अध्यक्ष ही अधिवेशन की अध्यक्षता करेगें l महामंत्री/मंत्री कार्यक्रमों का सञ्चालन करेगे l परन्तु किसी विशिष्ठ कार्यक्रम की अध्यक्षता हेतु अन्य शिक्षाविद भी आमंत्रित किये जा सकते हैं l
धारा 10.अधिवेशन की कार्य सूची
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1. अधिवेशन की कार्यसूची स्वागत समिति के प्राम्भिक प्रस्ताव के आधार पर संघ की कार्यकारिणी निर्धारित करेगी,
2. अधिवेशन में प्रस्तुत किये जाने वाले प्रस्ताव समिति के द्वारा विधीवत विचार करके बहुमत से पारित किये जायेंगे, प्रस्ताव समिति में अधिवेशन के संरक्षक, अध्यक्ष, महामंत्री, कार्यकारिणी समिति के अन्य सदस्यों में से ही महामंत्री द्वारा मनोनीत दो सदस्य तथा मण्डलीय अध्यक्ष / मंत्री सम्मिलित होंगे,
3. प्रस्ताव समिति द्वारा पारित प्रस्तावों में अधिवेशन के समय उपस्थित प्रतिनिधियों के 1/3की अनुमति से संशोधन भी प्रस्तुत किये जा सकेंगे l जो 2/3 के बहुमत द्वारा स्वीकृत होने पर सम्बन्धित संशोधन के साथ पारित समझे जायेंगे,
4. सदन एकमत होने पर नये प्रस्ताव भी प्रस्तुत एंव पारित किये जा सकेंगे,
5. असाधारण अधिवेशन में केवल उन्ही विषयों / समस्याओं पर विचार किया जायेगा जिनके निमित्त विशेष रूप से उसका आव्हान किया गया हो l
धारा 11.प्रतिनिधित्व एंव मतदान
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अधिवेशन में भाग लेने वाले सदस्य जिन्होंने निर्धारित सदस्यता एंव प्रतिनिधी शुल्क जमा कर दिया हो, प्रतिनिधी माने जायेगे, मतदान का अधिकार विद्यालय स्तर की शाखा के वैध तथा नियमित सदस्यों की संख्या के अनुसार इस प्रकार होगा :-
1. 01 से 10 सदस्यों तक – 01 मत
2. 11 से 20 सदस्यों तक – 02 मत
3. 21 से 30 सदस्यों तक – 03 मत
इसी रीति से अधिक सदस्यों को मतदान का अधिकार होगा, अधिवेशन स्तर पर प्रतिनिधी शुल्क जमा करते समय विद्यालय के शाखा अध्यक्ष और मंत्री का निम्न लिखित प्रमाण पत्र को जमा करना आवश्यक होगा, तभी मतदान के अधिकारी होगें l
प्रमाण पत्र का प्रारूप
प्रमाणित किया जाता है कि श्री…………………………………………जो इस विद्यालय शाखा……….जनपद…………………….के नियमित तथा वैध सदस्य हैं, इन्हें इस शाखा द्वारा प्रादेषित अधिवेशन में मतदान हेतु अधिकृत किया गया है l
हस्ताक्षर शाखा अध्यक्ष हस्ताक्षर शाखा मंत्री
स्थान ……………. स्थान …………….
दिनांक ……………. दिनांक ……………..
घोषणा पत्र का प्रारूप
सेवा में,
श्री……………………………
महामंत्री राजकीय शिक्षक संघ, उत्तराखण्ड
महोदय, मैं संघ एंव संघ संविधान के प्रतिपूर्ण निष्ठावान रहूंगा/ रहूंगी और तदधीन निर्गत निर्देशों का विधिवत पालन करूँगा/करूंगी l मैंने निर्धारित सभी स्तरों का शुल्क जमा कर दिया है l मेरा नाम सदस्यता पंजि में अंकित करने का कष्ट करें
भवदीय
स्थान…………… स्थान……………..
दिनांक …………… पुरा नाम………………
शाखा…………………… जिला…………………………
प्रतिहस्ताक्षर (शाखा अध्यक्ष) प्रतिहस्ताक्षर (शाखा मंत्री)
1. यह घोषणा पत्र प्रत्येक सदस्य द्वारा दो प्रतियों में भर कर वार्षिक सदस्यता शुल्क के साथ शाखा मंत्री को दिया जाना चाहिए, शाखा मंत्री एक प्रति अपने कार्यालय में सुरक्षित रख दूसरे प्रति प्रांतीय महामंत्री के कार्यालय में भेजेंगे,
2. शाखा मंत्रियों को अपने विद्यालय शाखा सदस्यों की विधिवत सुचना वर्ष में एक बार प्रांतीय महामंत्री को अवश्य देनी चाहिए l
जिला……….. शाखा का नाम……… पूर्व पंजीयन संख्या वर्ष में पंजीकृत/ पुनर्गठन संख्या
संघ के संविधान के अंतर्गत एक उपनियावाली बनायी गयी है जिसमें कार्यकारिणी परिषद तथा कार्यकारिणी के अधिकारियों के अधिकारों वर्णन किया गया है l जो इस प्रकार है…..
उपनियमावली
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1. कार्यकारिणी परिषद :-
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कार्यकारिणी संघ की प्रमुख प्रबंधकारिणी होगी l संघ के कोष के उचित उपयोग के लिए उत्तरदायी होगी, संघ के किसी भी अधिवेशन में पारित प्रस्तावों को क्रियान्वित करने तथा इन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने का उत्तरदायित्व भी उसी का होगा l सभी शाखाओं पर संघ के संविधान एंव नियमावली के अनुरूप नियंत्रण का दायित्व भी कार्यकारिणी वहण करेगी l महामंत्री आवश्यकतानुसार स्वेच्छा से अथवा अध्यक्ष के सुझाव पर अथवा समूची कार्यकारिणी की बैठक ¼ सदस्यों के प्रस्तावों पर बुलायेंगे l
2. कार्यकारिणी के अधिकार :-
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1. कार्यकारिणी के सत्र के मध्य में हुई रिक्तियों को भरना,
2. अधिवेशन आहूत करना,
3. मनोनयन करना,
4. आगामी वर्ष का अनुमानित आय-व्यय तैयार करना और उसे अधिवेशन में प्रस्तुत करना,
5. स्वीकृत व्यय शीर्षकों के अंतर्गत अध्यक्ष तथा महामंत्री के अधिकार क्षेत्र से परे धनराशि की स्वीकृति प्रदान करना,
6. शाखाओं द्वारा प्रस्तुत मामलों अथवा तात्कालिक महत्व के मामलों में ऐसे निर्णय लेना अथावा ऐसे आवश्यक कदम उठाना जो किसी पूर्व अधिवेशन में लिए निर्णयों से विपरीत ना हो l अवांछित समझे जाने पर ऐसे निर्णय आगामी अधिवेशन में निरस्त भी किये जा सकेगें,
7. कार्यकारिणी अथवा संघ के सदस्यों, पदाधिकारियों , किसी शाखा अथवा समिति के पक्ष अथवा विरोध में आवश्यक अनुशासनात्मक कार्यवाही करना l
8. किसी सदस्य अथवा पदाधिकारी को संघ के प्रति अथवा कर्तव्यनिष्ठा के प्रति प्रशंसनीय कार्य के लिए सम्मनित करना,
9. किसी सदस्यस को संघ के प्रति देयधनराशि से मुक्त करना अथवा संघ के किसी धन संबंधी प्राप्त अधिकार को निरस्त करना,
10.सदस्यता शुल्क की दरों का पुनरीक्षण करना,
11.आवश्यकता अनुसार विभिन्न समितियों की नियुक्ति करना,
राज्य कार्यकारिणी के पदाधिकारी एंव उनके अधिकार :
(क) संरक्षक
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यह पद सम्मान का रहेगा, अपने अनुभव व संघ के संविधान के अनुसार कार्यकारिणी का मार्ग दर्शन करेगा,
(ख) अध्यक्ष
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1. अधिवेशनो/कार्यकारिणी की बैठकों की अध्यक्षता करना उसमें अनुशासन कायम रखना,
2. किसी मामले में सामान मतदान की स्थिति में निर्णायक मत का प्रयोग करना,
3. आय व्यय में प्रावधान वाले शीर्षक में से किसी विशेष शीर्षक पर महामंत्री के अधिकार क्षेत्र के उपर 1000/-की व्यय की स्वीकृति प्रदान करना,
4. किसी एक शीर्षक से स्वीकृत धनराशि के अवशिष्ठ धन की किसी अन्य शीर्षक में स्थानांतरित करना,
5. अपना कोई विशेष अथवा समस्त अधिकार वरिष्ठ उपाध्यक्ष को हस्तांतरित (डेलिगेट) करना,
6. जब आवश्यक समझें महामंत्री द्वारा संघ की समस्त गतिविधियों हेतु बैठकों को बुलाना, महामंत्री द्वारा संघ की समस्त गतिविधियों हेतु बैठकों को बुलाना, महामंत्री द्वारा यथा समय कार्यवाही ना होने पर स्वयं बैठक भी आहूत कर सकेगा तात्कालिक आवश्यकतानुसारकार्यवाही करना
7. अपरिहार्य परिस्थिति में प्रांतीय कार्यकारिणी का कार्यकाल अधिकतम एक शिक्षा स्तर तक बढ़ाना, सामान्यतया कार्यकाल न बढाया जाये,
(ग) उपाध्यक्ष
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1. अध्यक्ष की अनुपस्थिति में अध्यक्षता करना
(घ) उपाध्यक्ष
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2. उपाध्यक्ष पुरुष तथा उपाध्यक्ष महिला को सामुहिक प्रकरणों के अतिरिक्त पुरुष तथा महिला संवर्ग की व्यक्तिगत /सामुहिक समस्याओं और उनके समाधान की दिशा में सजगतापूर्वक परामर्श देनें का विशेष दायित्व होगा