September 22, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग मामले की सुनवाई 23 मार्च तक टाली, कहा- अभी उपयुक्त समय नहीं

सुप्रीम कोर्ट शाहीन बाग से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ धरने पर बैठे लोगों को हटाने वाली याचिका पर बुधवार कहा कि अभी इसकी सुनवाई का उपयुक्त समय नहीं है। कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश जारी किए बिना अगली सुनवाई के लिए 23 मार्च की तारीख तय कर की। कोर्ट में दायर याचिका में प्रदर्शन के कारण बंद सड़कें खुलवाने की मांग की गई है।बता दें कि शाहीन बाग में दो महीने से ज्यादा वक्त से बंद पड़े सड़क को खोलने के लिए दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है।

दरअसल शाहीन बाग से प्रदर्शनकारियों को हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस याचिका पर पहले हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तीन लोगों संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और वजाहत हबीबुल्लाह को मध्यस्थ नियुक्त किया है। तीनों मध्यस्थों से शाहीन बाग जाकर प्रदर्शनकारियों से बात करने और ऐसा कोई रास्ता निकालने को कहा था जिससे प्रदर्शन की वजह से बंद रास्ता खुल जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बीते हफ्ते लगातार चार दिन तक मध्यस्थ धरनास्थल पर गए और बातचीत की। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दी।

पिछले दिनों कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं’

कोर्ट ने कहा कि कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई हैं। कोर्ट ने कहा कि वह दिल्ली हिंसा से जुड़ी किसी याचिका पर सुनवाई नहीं करेगा। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हिंसा से जुड़ी याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस जोसेफ ने पुलिस को लगाई फटकार

जस्टिस के एम जोसेफ ने पुलिस पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि पुलिस ने क्षमता से काम नहीं किया। अगर पुलिस समय रहते कार्रवाई करती तो यह स्थिति पैदा ही नहीं होती। अगर आप लोगों को खुली छूट देंगे तो मुश्किल पैदा होगी। अगर आप कानून के हिसाब से काम करते तो यह स्थिति नहीं आती। उन्होंने सरकार से कहा कि अगर आप पुलिस को कार्रवाई करने की छूट नहीं देंगे तो कैसे होगा? देखिए, ब्रिटेन की पुलिस कैसे कार्रवाई करती है। क्या उन्हें किसी के इजाजत की जरूरत होती है। अगर कोई भड़काऊ बयान देते है तो पुलिस को कार्रवाई करनी चाहिए।

प्रदर्शनकारियों से बात करने का आदेश

इस मामले को लेकर कोर्ट ने पीठ के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े और वकील साधना रामचंद्रन को प्रदर्शनकारियों से बात करने और उन्हें ऐसे वैकल्पिक स्थल पर जाने के लिए राजी करने को कहा था, जहां कोई सार्वजनिक स्थान अवरुद्ध न हो। इसके साथ पहले कहा कि लोकतंत्र विचारों की अभिव्यक्ति से चलता है लेकिन इसके लिए भी सीमाएं हैं।

15 दिसंबर से शाहीन बाग में जारी है धरना

बता दें कि 15 दिसंबर से शाहीन बाग में धरना चल रहा है। इससे दिल्ली को नोएडा से जोड़ने वाली सड़क बंद है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी गई थी। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संजय हेगड़े, साधना रामचंद्रन और वजाहत हबीबुल्लाह को मध्यस्थ नियुक्त किया था।शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के प्रदर्शन कर रहे लोगों से बातचीत के बाद मध्यस्थों ने अपनी सीलबंद रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा कर दी थी। सीलबंद लिफाफे में तीनों मध्यस्थों ने रिपोर्ट दी थी। इससे पहले सोमवार को इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले में 26 फरवरी को तारीख दी थी।

सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में क्या

सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त वार्ताकार वजाहत हबीबुल्ला ने सड़क बंद होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दायर किया था, उसमें रास्ता बंद होने में पुलिस को भी जिम्मेदार ठहराया था। हबीबुल्लाह ने अपने हलफनामे में कोर्ट को बताया था कि शाहीन बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन चल रहा था। यहां राहगीरों को असुविधा हो रही है, क्योंकि धरना स्थल से दूर पुलिस ने सड़क पर बेवजह बैरिकेड्स लगा रखे हैं। इससे पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लोगों को शांतिपूर्वक और कानूनी रूप से विरोध करने का पूरा हक है।

विरोध करने का सबको अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर कहा था कि दिल्ली के शाहीनबाग में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोग सार्वजनिक मार्ग अवरुद्ध कर दूसरों के लिए असुविधा पैदा नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने शाहीनबाग से इन प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए दायर याचिकाओं पर संक्षिप्त सुनवाई के बाद केन्द्र, दिल्ली सरकार और पुलिस को नोटिस जारी किए। पीठ ने कहा, ‘एक कानून है और इसके खिलाफ लोग हैं। मामला न्यायालय में लंबित है। इसके बावजूद कुछ लोग विरोध कर रहे हैं। वे विरोध करने के हकदार हैं।’


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