September 22, 2024

विवादों में एससीईआरटीः शासन का ताजा आदेश प्रशासनिक संवर्ग पर भी होगा लागू!

देहरादून। आज विद्यालयी शिक्षा में शासन द्वारा विभाग में कार्यों की गुणवत्ता सुधार हेतु एक ऐसे शासनादेश का संज्ञान लिया गया है जिसकी विभाग ने वर्षों से जम कर धज्जियाँ उड़ाई है। शिक्षा विभाग में 2011 का एक शासनादेश है जिसके आधार पर विभाग में अधिकारियों के लिए दो सँवर्गों का गठन हुआ अकादमिक/शैक्षणिक और प्रशासनिक।

शासन का मानना है की शैक्षणिक संवर्ग के अधिकारियों को प्रशासनिक दायित्वों से मुक्त रहना चाहिए तो क्या यह शासनादेश प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों पर भी लागू होगा जो अकादमिक संस्थानों में कार्य कर रहे हैं। इसीलिए प्रधानाचार्य एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह बिष्ट ने इसे द्वेषपूर्ण भावना से निर्गत आदेश बताया है।

अकादमिक/शैक्षणिक संस्थानों की परिभाषा शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 में स्पष्ट दी गयी है जिसके अंतर्गत एससीईआरटी और डायट मान्यता प्राप्त अकादमिक संस्थान हैं। और उत्तराखंड में इन्हीं संस्थानों की धज्जियाँ जम कर उड़ाई गयी। स्थिति इतनी विकराल रूप के चुकी है कि उत्तराखंड आज राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण में अपने अब तक के सबसे निचले पायदान पर है।

इन संस्थानों के सर पर अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण नाम के निदेशालय का बोझ तो रखा गया लेकिन इन संस्थाओं के कार्मिकों के लिए यह निदेशालय वर्षों से एक अदद नियमावली तक नहीं बना पाया। वो भी तब जब यहाँ के कार्मिकों हेतु 2013 में शासनादेश भी हुआ किंतु नियमावली के अभाव में यह शासनादेश पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया। स्थिति यह बन गयी की ये संस्थान प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों के लिए सबसे बड़ी ऐशगाह बन गया।

यह एकमात्र ऐसा निदेशालय है जिसके अपने कार्मिक ही नहीं हैं। इन संस्थानों में काम करने वाले कार्मिक माध्यमिक या प्रारम्भिक निदेशालय के हैं। ऐसे में निदेशालय अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण के वजूद पर ही प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं। प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारी इन संस्थानों को जनपदों के प्रशासनिक पदों से अधिक मुफ़ीद पाते हैं क्योंकि इस प्रदेश में शिक्षा की गुणवत्ता की जवाबदेही तो किसी की बनती नहीं वर्ना गिरती गुणवत्ता के लिए कोई दोषी होता जबकि प्रशासनिक कार्यों की जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

2013 के शिक्षक शिक्षा संवर्ग संबंधी शासनादेश के आलोक में प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों की सेवा नियमावली से अकादमिक संस्थानों से प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों के पदों को समाप्त किया जा चुका है। इसलिए आज की तारीख़ में प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों को अवैधानिक रूप से अकादमिक संस्थानों में रखा गया है।

अब मुद्दा यह है कि 2011 के जिस शासनादेश का संज्ञान ले कर शासन ने अकादमिक/शैक्षणिक संवर्ग के अधिकारियों को प्रशासनिक दायित्वों से मुक्त रखने का निर्णय लिया है, क्या उसी प्रकार सरकार अकादमिक संस्थानों से प्रशासनिक संवर्ग के अधिकारियों को भी तत्काल प्रभाव से मुक्त कर सकेगी? जो कि अवैधानिक रूप से शैक्षणिक संस्थानों के ऐसे पदों पर वर्षों से जमे हुए हैं जो कि हैं ही नहीं।


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