September 22, 2024

‘पहाड़ पुत्र’ है अडिग, जो कहा वो किया, भयभीत हुआ भ्रष्टाचार-2

Caption: Trivendra Singh Rawat. (File Photo: IANS)

देहरादून। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के मामले में उत्तराखंड देश कई राज्यों के मुकाबले आगे निकल गया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में प्रदेश में चल रही भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टालरेंस की नीति अपनाकर राज्य को राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों के मुकाबले आगे ला खड़ा किया है।

बीते साढ़े तीन साल में प्रदेश सरकार ने ऐसे कई कदम उठाये हैं जिनसे कई विभागों में साल 2017 से पूर्व चल रहे भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम लगा दी गई है। प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के तुरंत बाद रावत ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ राज्य सरकार की नीति जीरो टॉलरेंस की होगी।

मुख्यमंत्री की पहल पर एनएच 74 मामले में सरकार बनने के तुरंत बाद एसआइटी के गठन और दर्जनों लोगों के जेल जाने से रावत और प्रदेश सरकार के इरादे स्पष्ट हो गए थे।

जीरो टालरेंस की नीति अपनाने के बाद प्रदेश सरकार अब तक भ्रष्टाचार के लगभग ढाई दर्जन मामलों में कड़ी कार्यवाही करके 55 से अधिक दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों को जेल भेज चुकी है। मुख्यमंत्री रावत ने विभिन्न मंचों से यह स्पष्ट भी किया है कि प्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाते हुए सत्ता के गलियारों से दलालों का पूरी तरह सफाया कर दिया गया है।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाये गये अभियान के तहत खाद्य विभाग में ऊधम सिंह नगर जिले में सरकार ने करीब 600 करोड़ रुपये का चावल घोटाला पकड़ा।

छात्रवृत्ति घोटाले की जांच में एसआइटी द्वारा डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) में करोड़ों रुपये की बकाया राशि की वसूली में लापरवाही बरतने पर कड़ी कार्रवाई की गई। इसके अतिरिक्त प्रदेश सरकार ने खनन पट्टों की ई-नीलामी की प्रक्रिया लागू कर अनियमितताओं की सभी संभावनाएं समाप्त कर दी हैं।

ट्रांसपेरेंसी इंडिया के साल 2019 के सर्वे के मुताबिक राज्यों में रिश्वतखोरी के मामलों में उत्तराखंड का स्थान उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से नीचे रहा है।

इन राज्यों के मुकाबले उत्तराखंड में कम लोगों को सरकारी कामकाज के लिए रिश्वत देनी पड़ी। जानकारों का मानना है कि सरकारी कामकाज में पारदर्शिता बढ़ाने और आम जनता से लेकर सरकारी ठेकों की नीलामी को ऑनलाइन बनाकर जनता का अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों से संपर्क सीमित किया गया।


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