September 22, 2024

जल्दी ही बाजार में उतर सकती है कोरोना वायरस का खात्‍मा करने वाली ये छह वैक्सीन

चीन के वुहान से फैला कोरोना वायरस अमेरिका से यूरोप तक मौत बांट रहा है। लेकिन अब दुनिया भर के डॉक्टरों ने कोरोना वायरस का तोड़ ढूढ़ने की ठान ली है और इसे मुकम्मल अंजाम तक पहुंचाने की तैयारी भी पूरी हो चुकी है। कोरोना वायरस को बेअसर करने के लिए दुनियाभर में 100 से ज्यादा वैक्सीन प्री-क्लीनिकल ट्रायल पर हैं और उनमें से कुछ का इंसानों पर प्रयोग भी शुरू हो गया है। चीन से लेकर अमेरिका तक वैक्सीन बनाने की होड़ लग गई है।

महज तीन महीने के भीतर कोरोना वायरस की वैक्सीन पर काम कर रही 90 रिसर्च टीमों में से छह उस मुकाम पर पहुंच गई हैं, जिसे किसी भी वैक्सीन का सबसे बड़ा लक्ष्य माना जाता है। जानकारों का कहना है कि जिस रफ़्तार से वैज्ञानिक कोरोना वायरस के टीके के लिए रिसर्च कर रहे हैं, वो असाधारण है। दरअसल, किसी वैक्सीन के विकास में सालों लग जाते हैं और कभी-कभी तो दशकों भी। मसलन हाल ही जिस इबोला वैक्सीन को मंजूरी मिली है, उसके विकास में 16 साल का वक़्त लग गया। इसमें हैरत की कोई बात नहीं है। क्योंकि किसी भी वैक्सीन के विकास की प्रक्रिया कई चरणों से होकर गुजरती है। पहला फ़ेज़ लैबोरेटरी में होता है और उसके बाद जानवरों पर परीक्षण होता है।

इंसानों पर परीक्षण की प्रक्रिया भी तीन चरणों में पूरी होती है। पहले चरण में भाग लेने वाले लोगों की संख्या बहुत छोटी होती है और वे स्वस्थ होते हैं। दूसरे चरण में परीक्षण के लिए भाग लेने वाले लोगों की संख्या ज़्यादा रहती है और कंट्रोल ग्रुप्स होते हैं। इस कंट्रोल ग्रुप्स के जरिए ये देखा जाता है कि वैक्सीन कितना सुरक्षित है। कंट्रोल ग्रुप का मतलब ऐसे समूह से होता है जो परीक्षण में भाग लेने वाले बाक़ी लोगों से अलग रखे जाते हैं। प्रयोग के तीसरे चरण में ये पता लगाया जाता है कि वैक्सीन की कितनी खुराक असरदार होगी।

कोरोना की वैक्सीन बनाने का दावे तो बहुत हैं, लेकिन छह वैक्सीन ऐसी हैं जो जल्द ही बाजार में उतर सकती हैं और दुनिया को कोरोना वायरस से बचा सकती हैं। इन छह वैक्सीन में दो अमेरिका में बन रही हैं, जहां कोरोना वायरस ने सबसे ज्यादा लोगों की जान ली है।

1. मॉडर्ना-1273 वैक्सीन

दुनिया को कोरोना वायरस से बचाने वाली वैक्सीन में सबसे ज्यादा चर्चा मॉडर्ना-1273 वैक्सीन की हो रही है। मॉडर्ना थेराप्युटिक्स एक अमेरिकी बॉयोटेक्नॉलॉजी कंपनी है, जिसका मुख्यालय मैसाचुसेट्स में है। ये कंपनी कोविड-19 की वैक्सीन के विकास के लिए नई रिसर्च रणनीति पर काम कर रही है। इसका मकसद ऐसी वैक्सीन तैयार करना है जो किसी शख्स की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सके ताकि वो कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ सके और बीमारी को रोके। इसके ट्रायल को अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ की फंडिंग मिल रही है। ये वैक्सीन मैसेंजर RNA या मैसेंजर राइबोन्यूक्लिक एसिड पर आधारित है।

2. INO-4800 वैक्सीन

अमेरिका में एक और वैक्सीन बन रही है, जिसका नाम इनोवियो-4800 वैक्सीन है। अमेरिकी बॉयोटेक्नॉलॉजी कंपनी इनोवियो फ़ार्मास्युटिकल्स का मुख्यालय पेंसिल्वेनिया में है। इनोवियो भी रिसर्च की नई रणनीति पर अमल कर रही है। कंपनी का फोकस ऐसी वैक्सीन तैयार करने पर है, जिसमें मरीज़ की कोशिकाओं में प्लाज़्मिड के ज़रिए सीधे डीएनए इंजेक्ट किया जाएगा। .इवोवियो की टीम को उम्मीद है कि इससे मरीज़ के शरीर में संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ का निर्माण शुरू हो जाएगा। इनोवियो भी नई तकनीक का सहारा ले रही हैं, जिसमें एक आनुवंशिक संरचना में बदलाव किया जा रहा है या फिर उसमें सुधार किया जा रहा है।

3. AD5-nCoV वैक्सीन

16 मार्च को जिस दिन अमेरिका की मॉडर्ना थेराप्युटिक्स ने इंसानों पर अपनी वैक्सीन का परीक्षण शुरू किया था। उसी दिन चीनी बॉयोटेक कंपनी कैंसिनो बॉयोलॉजिक्स भी अपने ट्रायल्स शुरू किए थे। इस प्रोजेक्ट में कैंसिनो बॉयोलॉजिक्स के साथ इंस्टीट्यूट ऑफ़ बॉयोटेक्नॉलॉजी और चाइनीज़ एकेडमी ऑफ़ मिलिट्री मेडिकल साइंसेज़ भी काम कर रहे हैं। AD5-nCoV वैक्सीन में एडेनोवायरस के एक ख़ास वर्ज़न का इस्तेमाल वेक्टर के तौर पर किया जाता है। वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है कि ये वेक्टर उस प्रोटीन को सक्रिय कर देगा जो संक्रमण से लड़ने में प्रतिरोधक क्षमता के लिए मददगार हो सकता है।

4. LV-SMENP-DC वैक्सीन

चीन के ही शेंज़ेन जीनोइम्यून मेडिकल इंस्टीट्यूट में एक और ह्यूमन वैक्सीन LV-SMENP-DC का परीक्षण भी चल रहा है। इसमें एचआईवी जैसी बीमारी के लिए ज़िम्मेदार लेंटीवायरस से तैयार की गई उन सहायक कोशिकाओं का इस्तेमाल किया जाता है जो प्रतिरोधक क्षमता को सक्रिय करती हैं।

चीन में जिस तीसरी वैक्सीन पर काम चल रहा है उसमें निष्क्रिय वायरस की वैक्सीन दिए जाने का प्रस्ताव है। इस पर वुहान बॉयोलॉजिकल प्रोडक्ट्स इंस्टीट्यूट में काम चल रहा है। इस वैक्सीन के लिए निष्क्रिय वायरस में कुछ ऐसे बदलाव किए जाते हैं जिनसे वो किसी को बीमार करने की अपनी क्षमता खो देते हैं। चीनी डॉक्टरों के मुताबिक वैक्सीन तैयार करने की ये सबसे सामान्य तकनीक है। ज़्यादातर वैक्सीन इसी प्रक्रिया से तैयार किए जाते हैं। इसमें मंज़ूरी लेने की अड़चन कम आती है। इसलिए अगर अगले 12 से 16 महीनों के बीच कोई वैक्सीन तैयार होने वाली है तो वो इसी तकनीक पर आधारित होगी।

5. ChAdOx1 वैक्सीन

कोरोना की वैक्सीन बनाने में ब्रिटेन भी पीछे नहीं है। ब्रिटेन की ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट में ChAdOx1 वैक्सीन के विकास का काम चल रहा है। 23 अप्रैल को यूरोप में इसका पहला क्लीनिकल ट्रायल शुरू हुआ है। जेनर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक भी उसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जिस पर चीनी कंपनी कैंसिनो बॉयोलॉजिक्स रिसर्च कर रही है। लेकिन ऑक्सफर्ड की टीम चिन्पांज़ी से लिए गए एडेनोवायरस के कमज़ोर वर्ज़न का इस्तेमाल कर रही है। इसमें कुछ बदलाव किए गए ताकि इंसानों में ये ख़ुद का विकास न करने लगे।

6. इजरायल ने भी बनाया टीका

मंगलवार को इजरायल ने भी कोरोना वायरस का टीका बनाने का दावा किया था। इजरायली रक्षा मंत्री के मुताबिक ये टीका इंजरायल की इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल रिसर्च ने बनाया है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने फरवरी में इस इंस्टीट्यूट को कोरोना का टीका विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। हालांकि अब इटली ने भी कोरोना की काट ढूंढने का दावा कर दिया है, लेकिन जबतक इंसानों पर ट्रायल के ठोस परिणाम नहीं मिलते तबतक इसे आस ही कहा जाएगा।


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