September 22, 2024

इस ऐलान के लिए त्रिवेंद्र सिंह हमेशा मेरे हीरो रहेंगे!

अर्जुन सिंह रावत

नौ मार्च, 2021 का दिन था, त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री पद से अपने इस्तीफे का ऐलान करने के बाद मुख्यमंत्री आवास के लान में बैठे थे। उनके आसपास कई शुभचिंतक, समर्थक और पार्टी कार्यकर्ता थे। अपने इस्तीफे का ऐलान करते समय उन्होंने जितनी मजबूती दिखाई, उनकी बॉडी लैंग्वेज से वो अब नजर नहीं आ रही थी। हां, वो मुस्कुराकर अपनी भावनाओं के ज्वार को दबाने की कोशिश जरूर कर रहे थे। अगर कोई उस भावना को छेड़ देता तो वो आंखों से बाहर भी निकल आती।

अपनी पत्रकारिता का लंबा समय दिल्ली में बिताने के बाद मैं सितंबर 2019 में देहरादून आ चुका था, तब एक पत्रिका के लिए काम करना शुरू किया था। एक कार्यक्रम के संबंध में पहली बार त्रिवेंद्र सिंह रावत से मिलना हुआ। औपचारिक बेहद छोटी मुलाकात थी। इसके बाद एक या दो दफा सिर्फ दुआ-सलाम हुई।

मसलन, ऐसा परिचय नहीं हुआ था, जिससे मैं उनसे कुछ भी बेतक्कलुफ होकर पूछ पाता, या कहूं मैंने कोशिश भी नहीं की। …पर पता नहीं क्यूं उस दिन मैं भावुक था, इसलिए नहीं कि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, बल्कि इसलिए कि मेरे जेहन में बार-बार उनकी एक लाइन आ रही थी, ‘…गैरसैंण पहाड़ की भावना का प्रतीक है।.’ मैं बार-बार एक साल पहले 4 मार्च, 2020 को गैरसैंण-भराड़ीसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के ऐतिहासिक ऐलान को याद कर रहा था। मुझे न जाने क्यों लग रहा था कि अब कोई इतनी मजबूती, इतनी शिद्दत से गैरसैंण के लिए वकालत नहीं करेगा, ये ऐलान यूं ही भुला दिया जाएगा। 4 मार्च 2023 आ गया है, मेरी वो चिंता सही साबित हो रही है। गैरसैंण अब बस रस्म अदायगी तक सिमट गया है। पहाड़ी राज्य के विधायकों को गैरसैंण में सत्र में शामिल होने में ठंड लगती है और गैरसैंण का जिक्र बस रैलियों में तालियां बजवाने के लिए हो रहा है। आखिर क्यों… किसी को ये मुद्दा गंभीर नहीं लगता, क्यों हमारे नेता खुलकर इस पर बोलने से कतराते हैं।

गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान त्रिवेंद्र सिंह रावत की डिसीजन मेकिंग कैपेसिटी का पुख्ता प्रमाण था। वो कहते हैं ना, वॉक द टॉक… उन्होंने सिर्फ घोषणा ही नहीं की, बल्कि 8 जून 2020 को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी की अधिसूचना जारी करवाई और एक भारी-भरकम बजट वहां इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए घोषित किया।

कभी-कभी मैं सोचता हूं कि जिस उत्तराखंड राज्य का आंदोलन गैरसैंण राजधानी के नारे के साथ जवान हुआ, वो आज हमारी प्राथमिकता से गायब क्यों है। किसी दिन अचानक हमें याद आता है और हम ट्विटर, फेसबुक पर #गैरसैंण_राजधानी के साथ विधानसभा की बिल्डिंग का बर्फ से लकदक फोटो चस्पा कर देते हैं। जब उत्तराखंड आंदोलन परवान चढ़ रहा था, मैं भी बचपन की दहलीज से किशोरावस्था की तरफ बढ़ रहा था, उस दौर की दो चीजें हमेशा के लिए मेरे जेहन में दर्ज हो गईं, उत्तराखंड के लिए हमारे आंदोलनकारियों की कुर्बानी और गैरसैंण राजधानी। मैं एक नए राज्य के उदय के साथ बालिग हुआ। तब बस इतना समझ पाया कि अपना राज्य बन गया है और अब सबकुछ अच्छा होगा। हमारे सारे सपने पूरे होंगे। तब न पहाड़ों से उतरकर शहरों की तरफ भाग रहे सपनों की नियति का अंदाजा था, न एक दिन सबकुछ गंवाकर पहाड़ लौटने की कड़वी हकीकत दिख रही थी। डेढ़ दशक दिल्ली में बिताने के बाद समझ आया कि प्रवासी अपनी जड़ों से दूर हुए वो पौधे हैं, जो खिल तो जाएंगे लेकिन अपना अस्तित्व बचाने के लिए एक दिन लौटकर इन पहाड़ों पर ही आएंगे।

नौ मार्च 2021 की शाम मुख्यमंत्री आवास के लान में बैठकर जिंदगी में जैसे सबकुछ फ्लैशबैक चल रहा था। बार-बार मैं गैरसैंण में राजधानी के ऐलान को याद कर रहा था। गैरसैंण को लेकर पहली बार कोई ऐलान सियासी मंच से नहीं बल्कि सदन के फ्लोर से किया गया था। ये अपने आप में बहुत कुछ कहता था। कइयों ने तब कहा था कि स्थायी राजधानी का ऐलान क्यों नहीं किया, कुछ ने कहा, ये सरकार की घटती लोकप्रियता से ध्यान हटाने की कवायद है और कुछ ने दो राजधानियों के मॉडल को कोलोनियल हैंगओवर बताकर कटाक्ष किया। मुझे आज भी लगता है कि उस दिन अगर सबसे राजनीति से इतर ये सोचकर इस फैसले का स्वागत किया होता कि ये पहाड़ी राज्य की राजधानी को पहाड़ पर ले जाने की दिशा में पहला बड़ा कदम है तो शायद सूरतेहाल कुछ और होता। क्रेडिट किसको मिलता इस पर डिबेट हो सकती है, लेकिन वो सपना जो सबका साझा था, पहाड़ की चिंता करने वाले एक शख्स ने उसकी ओर बढ़ने की हौसला दिखाया था, ये बड़ी बात थी। मुझे हर होली में गैरसैंण के बाहर खेली गई 4 मार्च 2020 की होली याद आती है। फिजा में बिखरे रंग, खिले चेहरे और ढोल-दमौं की थाप जैसे हमारे सपनों के हकीकत में बदलने की मुनादी कर रही थी।

त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल को लेकर हर किसी के अपने-अपने आग्रह और पूर्वाग्रह हो सकते हैं। उनकी करीब चार साल चली पारी के हासिलों और मुश्किलों पर बहस हो सकती है। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। सबका अपना-अपना मत है, सत्ता का मुखर प्रतिपक्ष होना, लोकतंत्र के जिंदा रहने के लिए जरूरी भी है। लेकिन उनके लगभग चार साल के कार्यकाल में पहाड़ के लिए कई सौगातें थीं, ये हकीकत चाहकर भी झुठलाई नहीं जा सकती। आज भी उत्तराखंड की उपलब्धियों का अगर कहीं जिक्र होता है तो उसमें उनके कार्यकाल का फुटप्रिंट नजर आता है। राजनीति में सबसे अहम परसेप्शन बनाए रखना होता है, ये शायद उनकी कमजोर कड़ी रहा, लेकिन गैरसैंण को लेकर उनका ऐलान एक सच्चे पहाड़पुत्र की दिल से निकली आवाज़ थी। मैं सीएम पद से हटने के बाद उनसे कई दफा मिल चुका हूं, मुझे उनके हंसते चेहरे के पीछे इस बात की मायूसी हमेशा नजर आती है कि थोड़ा समय और मिल पाता तो मैं पहाड़ के लिए कुछ और बेहतर कर पाता।
जब भी गैरसैंण-भराड़ीसैंण का जिक्र होता है, मुझे 4 मार्च 2020 का वो ऐलान याद आता है। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के ऐलान के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत हमेशा मेरे हीरो रहेंगे। इस सपने के साथ कि एक दिन गैरसैंण उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनेगी। हम सब ऐसा होते देख पाएंगे।


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