September 22, 2024

त्रिवेंद्र की तीरछी नज़र: चौथे माले पर मद्धम होती ‘ऊँ’ की ध्वनि और बंद होते ‘प्रकाश’ के कपाट

उत्तराखंड में अधिकारियों कीे निरंकुश कार्यशैली और मनमाने रवैये पर टीएसआर कीे तीरछी नज़र

देहरादून। उत्तराखंड शासन में बड़े पैमाने पर हुए तबादले के बीच चौथे माले स्थित रंग-भवन की रंगत फीकी पड़ने लगी है। योजना भवन में सुनाई देने वाली ध्वनि मद्धम हो चली है। इसी माले से प्रस्फुटित होने वाले ‘प्रकाश’ की किरणे छितराने लगी है। इस राजादेश से उत्तराखंड शासन को दैदीप्यमान करने वाले ‘प्रकाश’ की लालिमा न सिर्फ कुंद पडने लगी है बल्कि इसके लिए राजप्रसाद के कपाट भी बंद होते दिखाई पड़ रहे हैं। यह सब अचानक नहीं हुआ है। बल्कि लंबे समय से ‘ऊँ’ की ध्वनि कर्कस हो चली थी और उसका प्रकाश भी हदें लांघ रहा था। कई मौकों पर सरकार बहादूर इससे असहज भी हुए। लेकिन इसके बावजूद भी ध्वनि और प्रकाश का वेग मगधी सामंतों के अश्वों पर सवार होकर सीमाएं लांघता रहा। लिहाजा देर-सवेर ही सही क्षेत्र के ईष्ट ने जीरो टाॅलरेंस का अपना ब्रह्मास्त्र चलाया और राज्य को अपनी जागीर समझ बैठे मठाधीश के पर कुतर डाले और संदेश दिया कि वह बेलगाम घोड़ों को काबू कर नकेल कसना जानता हैं।

क्या है प्रकरण…?

दरअसल मामला प्रदेश की नौकरशाही से जुड़ा है। सूबे में अफसरशाही इतनी हावी है कि सरकार भी उनके सामने घुटने टेक देती है। राज्य गठन से लेकर अब तक प्रत्येक सरकार में नौकरशाहों की तूती खूब बोली है। कभी सारंगी तो कभी राकेश शर्मा जैसे नौकरशाहों ने सत्ता को अपने हिसाब से चलाया। अब बारी अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश की है। ओम प्रकाश मौजूदा समय में प्रदेश का सबसे ताकतवर नौकरशाह है। कहने को तो लोग यह भी कहते हैं कि सरकार किसी की भी रही हो ओम प्रकाश सबका लाड़ला रहा है। लेकिन ओम प्रकाश का झुकाव अगर किसी के प्रति बताया जाता है तो वह मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं। त्रिवेंद्र जब सीएम बने तो ओम प्रकाश के तेवर बदल गये। बताया जाता है कि ओम प्रकाश त्रिवेंद्र के चहेते नौकरशाह है। इतना ही नहीं मीडिया में अगले मुख्य सचिव के तौर पर ओम प्रकाश को पेश किया जाने लगा और यही ओम प्रकाश भी तो चाहता है। शायद ओम प्रकाश अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाते तो वह प्रदेश के मुख्य सचिव बन भी जाते लेकिन मौजूदा हालात बताते हैं कि वह इस दौड़ से बाहर हो चुके हैं। उनसे मलाईदार पद छीना जाना इस बात की ओर साफ इशारे करते हैं। यानी साफ है कि ओम प्रकाश के लिए त्रिवेंद्र के दरवाजे बंद होते जा रहे हैं।

एक खत की खता

मुख्यमंत्री के खास कहे जाने वाले अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश से पद छिने जाने के पीछे कई वजह बताई जा रही है। सबसे बड़ी वजह वो खत है जिसने सरकार की नींद उड़ा दी थी। यह खत ओम प्रकाश ने लिखा था। बस यही खत ओम प्रकाश की सबसे बड़ी खता बन गया। एक ओर वैश्विक महामारी से देश और प्रदेश संकट में है और प्रदेश का सबसे ताकतवर नौकरशाह इससे कोई वास्ता नहीं रखता। वह उत्तर प्रदेश के एक दोयम दर्जे के विधायक अमनमणि त्रिपाठी को बदरीनाथ घूमने की खुली छूट देता है। वह भी तब जब बदरीनाथ के कपाट बंद हो। ओम प्रकाश की यह गलती उसके लिए सबसे भारी साबित होने जा रही है। त्रिवेंद्र को विपक्ष लाख बुरा बताये लेकिन वहीं विपक्ष त्रिवेंद्र के सटीक फैसलों का कायल भी है। अमनमणी त्रिपाठी प्रकरण के बाद ओम प्रकाश त्रिवेंद्र की नजरों में खटकने लगे थे लिहाजा सीएम ने मौका मिलते ही ओम प्रकाश के पर कतर दिये और संदेश दिया कि वह गलती कतई बर्दाश्त नहीं करते फिर चाहे वह कितना ही खास क्यों न हो।

फक्र-ए-हिंद का अपमान

अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश उस वक्त भी चर्चा में आये जब उन्होंने फक्र-ए-हिंद आौर महावीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट जनरल हणुत सिंह का आश्रम उनके भंजे से खाली करवा था। इस पूरे प्रकरण में बिहारी महासभा और अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश संलिप्ता मानी जाती है। आश्रम में आस्था रखने वालों लोगों का कहना है कि प्रदेश के इस निरंकुश नौकरशाह ने बिहारी महासभा के लोगों के साथ मिल कर नगर निगम द्वारा संत जनरल हणूत सिंह को दी गई जमीन खुर्द-बुर्द करने की साजिश रची। जिसमें ये लोग काफी हद तक सफल भी रहे। अपने युद्ध कौशल से पाकिस्तान की कमर तोड़ देने वाले महावीर चक्र विजेता हणूत सिंह ने कभी नहीं सोचा होगा कि दो गज जमीन के लिए उनके वंशजों को बेघर कर दिया जायेगा। पाकिस्तान द्वारा फक्र-ए-हिंद से नवाजे गये संत जनरल हणूत सिंह के भांजे इस अडियल नौकरशाह और बिहारी महासभा की मिली भगत के चलते आज भी दर-दर भटक रहे हैं और उन्हें जनरल द्वारा स्थापित आश्रम नहीं मिल पाया। देश के लिए अपना जीवन समर्पण करने वाले संत जनरल का जो अपमान ओम प्रकाश जैसे निरंकुश नौकरशाह ने किया उसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह जानते हैं कि एक सैनिक के अपमान की सजा का बदला कैसे लिया जायेगा।

स्टिंगबाज दोस्त

त्रिवेंद्र का खास बन कर उन्हें ही ठिकाने लगाने के पैंतरे भी चले। याद कीजिये हरीश रावत की स्टिंग ऑपरेशन से कैसे मिट्टीपलीत कर दी थी। बस यही कारनामा फिर दोहराया जाने वाला था। लेकिन सीएम सतर्क थे लिहाजा ऐसी तिलमिलाहट हुई कि लंबे समय तक सीएम को टारगेट किया जाने लगा। मुख्यमंत्री कार्यालय को असहज होना पडा था। स्टिंगबाज अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के बहाने सीएम रावत की बेदाग छबि को दागदार करने की पुरजोर कोशिश में था लेकिन कर नही पाया। इतना जरूर हुआ की सीएम रावत के विरोधी खेमे को थोड़ा संजीवनी मिली। इस घटना के बाद स्टिंगबाज उमेश कुमार को उत्तराखंड से पलायन करना पडा था। दूसरी और मृत्युंजय मिश्रा प्रकरण ने भी सीएम को असहज किया लेकिन, त्रिवेंद्र ने इस भ्रष्टाचारी को अच्छा सबक सिखाया। स्टिंगबाज मिश्रा को पुल बनाकर सीएम के दरवार में एंट्री की फिराक में था, लेकिन यह हो न पाया। उत्तराखंड की राजनीति पर मजबूत पकड रखने वाले और बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें भी त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ मौहरा बनाया गया था। इसके लिए बार-बार सचिव ओमप्रकाश के हाथ में सरकार को चलाने की बात कही गयी। यह नेता बताते है कि हमे इस बात का जल्दी ही एहसास हो गया था कि सीएम रावत किसी भी सूरत में अपनी वेदाग छबि पर दाग लगने नहीे देंगे। जिसका उदाहरण वह कही बार पेश भी कर चुके है

मुख्यमंत्री सख्ती और अधिकारियों की बेचैनी

उत्तराखंड को पहली बार कोई कड़क मुख्यमंत्री मिला है जो नौकरशाही पर नकेल डालने में सक्षम है। सीएम ने अपने कई फैसले से यह साबित भी कट दिया है। हाल ही में समाज कल्याण विभाग में करोड़ों के छात्रवृत्ति घोटाले में आरोपित संयुक्त निदेशक गीताराम नौटियाल की बहाली के आदेश जारी करने के मामले की उच्च स्तरीय जाच के आदेश देकर सीएम रावत ने साफ कर दिया है कि अधिकारियों की मनमर्जी के दिन अब लद चुके है। सीएम रावत ने प्रकरण में विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाए बगैर अपने स्तर से कार्यवाही किए जाने की अविलंब जांच सुनिश्चित करते हुए दोषी अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश मुख्य सचिव को दे दिए हैं। जिसके बाद से शासन में बैठे आलाधिकारी भी बेचेन है। सीएम रावत का कहना है कि समाज कल्याण के अफसरों का यह कृत्य खेदजनक और अनुशासनहीनता का परिचायक है। लिहाज किसी को बख्शा नही जाएगा।

क्या मुख्यमंत्री करेंगे एक्शन

ओम प्रकाश के कृत्यों को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद कई बार ये संकेत दे चुके है कि उन्हें असहज महसूस कराने वाले अधिक दिन मनमानी नही कर सकते है। यही वजह है कि सीएम रावत ने संकेत दे दिये हैं कि ओम प्रकाश के दिन लद गये हैं। उन्होंने ओम प्रकाश से मलाईदार पद छीन कर जता दिया है कि वह भ्रष्टाचार को कतई भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। फिर चाहे वह कोई भी हो। ओम प्रकाश पर कई गंभीर आरोप हैं। लेकिन इस बार सीएम ने साफ कर दिया है कि ओम प्रकाश उनका कोई सगा नहीं हैं। जो भी गलत काम करेगा उसे सजा मिलेगी। हालांकि प्रदेश के लोगों सीएम से ऐसे भ्रष्ट नौकरशाह पर बड़ी कार्रवाही की उम्मीद पाले हैं। प्रदेश हित में ऐसे नौकरशाहों को चलता करना जरूरी भी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस बात को बखूबी समझते हैं कि एक क्षेत्र विशेष के नौकरशाहों ने इस प्रदेश को अपनी जागीर समझ रही है। लिहाजा ऐसे लोगों की संपत्ति की जांच होनी भी जरूरी है। उत्तराखंड शासन में ऐसे कई नौकरशाह हैं जो अपनी मनमानी पर उतर आये हैं ट्राॅस्फर-पोस्टिंग से लेकर टेंडरों में भारी घोलमाल चल रहा है लेकिन यह बात मुख्यमंत्री से छुपाई जाती है। ओम प्रकाश पर नकेल कसा जाना बताता है कि मुख्यमंत्री प्रदेश के प्रति संजीदा हैं और नौकरशाहों के तिकड़म को बखूबी समझ चुके हैं। लिहाजा बड़ी कार्रवाही होने की आसार नजर आने लगे हैं।


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