उत्तराखंड आपदा: राशन किट, मेडिकल सुविधा के इतर ओछी राजनीति करते चंद लोग…
चमोली/देहरादून: रविवार तक आपदा में लापता 206 लोगों में से अभी तक 50 लोगों के शव विभिन्न स्थानों से बरामद हुए है। साथ ही दो लोग पहले जिन्दा मिले थे। अब 154 लोग लापता चल रहे है जिनकी तलाश जारी है।
सरकार और प्रशासन आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राशन किट, मेडिकल और दूसरी अन्य रोजमर्रा की जरूरतों की आपूर्ति करने में दिनरात जुटा है। प्रभावित गांवों में हालात सामान्य होने लगे है। तपोवन में ट्राली से आवाजाही सुचारू ढंग से चल रही है। जुगजू में भी लोनिवि द्वारा ट्राली लगाने का काम जारी है। रैणी पल्ली मे भी ब्रिज निर्माण कार्य तेजी से किया जा रहा है। यहां पर क्षत्रिग्रस्त पेयजल लाईन को अस्थायी तौर पर ठीक किया गया है।
मेडिकल टीम प्रभावित क्षेत्रों में कैंप लगाकर स्वास्थ्य परीक्षण कर रही है। अब तक 998 मरीजों का उपचार किया गया। हैली से इधर उधर फंसे 445 लोगों को उनके गतंव्य तक भेजा गया। प्रभावित परिवारों में अब तक 515 राशन किट बांटे जा चुके हैं। जबकि 36 सोलर लाइट उपलब्ध कराई गई। पशुपालन विभाग ने रैणी में 25 फीड ब्लाक बांटे। 8 मृतकों के परिजनों तथा चार घायलों को सहायता राशि और एक परिवार को गृह अनुदान राशि दी गई।
तपोवन बैराज परिसर में दोनों और पोकलैंड, जेसीबी मशीनें युद्ध स्तर पर कार्य कर रही हैं। बाढ़ प्रभावित नदी किनारे में रेस्क्यू टीम खोजबीन कार्य जुटे है। रैणी क्षेत्र में एनडीआरएफ की टीम लगातर मलवे में लापता लोगों की तलाश कर रही है।
इससे इतर आपदा की इस घड़ी में कुछ लोग इसमें गंदी राजनीति के अवसर तलाश रहे है। विरोध की राजनीति करते-करते ये तथाकथित लोग बचाव और राहत कार्य में जुटी टीमों के सिस्टम की कार्यकुशलता और उनकी तकनीकी दक्षता तक पर सवाल उठा रहे हैं।
प्रभावित क्षेत्र में गुजरे सप्ताह के दौरान से सूचनाएं आई हैं तो वहां ऐसे लोगों की भी बड़ी जमात है जो राहत के नाम पर वहां मौजमस्ती करने पहुंचे हैं। कुछ वो हैं जो अपनी राजनीति चमकाने की मंशा से हैं। सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए यह सब हो रहा है। वहां प्रभावित लोगों के साथ ही राहत और बचाव में लगे जवानों का हौसला बढ़ाने की आवश्यकता है।
इधर इनके साथ मीडिया की एक खास जमात भी है। जो व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने की बजाय सीएम त्रिवेन्द्र रावत के व्यक्तिगत विरोध में उतर आये हैं। उनकी निगाहें बस इस बात पर है कि सीएम त्रिवेन्द्र क्या खा रहे हैं, और क्यों खा रहे हैं? कहां ठहरे हैं और किससे बात कर रहे हैं किससे नहीं।
साफ है कि व्यवस्था पर अंगुली उठाने के बजाए हर बार मुख्यमंत्री को निशाना बनाने का काम एक मिशन के तौर पर शुरू हो जाता है। दून से लेकर दिल्ली तक सिरफिरों के तार जुड़ जाते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इस तरह की छींटाकशी का काम वो लोग नहीं कर रहे जो पिछले कई दिनों से आपदा प्रभावित क्षेत्र में डटे हुए हैं और एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी व वायुसेना के जवानों की पल-पल की गतिविधियों के गवाह बने हुए हैं। सोशल मीडिया वॉरियर वो बने हुए हैं जो अभी तक देश की सीमा से लगे इस आपदाग्रस्त क्षेत्र में झांकने तक नहीं गए।