September 22, 2024

उत्तराखंड फल पौधशाला (विनिमयन) नियमावली 2021 का नहीं हो रहा अनुपालन

उत्तराखंड फल पौधशाला (विनिमयन) नियमावली 2021 का नहीं हो रहा अनुपालन

राजेंद्र प्रसाद कुकसाल

उत्तरप्रदेश फल नर्सरी (विनियमन) अधिनियम, 1976 में कुछ संशोधन कर राज्य का अपना उत्तराखंड फल पौधशाला (विनिमयन) नियमावली 2021 प्रभावी हो गया है, इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य यहां की जलवायु के अनुरूप रोग रहित उच्च गुणवत्ता के पौधों का उत्पादन कर बागवानों को उपलब्ध कराना था किन्तु इस एक्ट का अनुपालन नहीं किया जाता । योजनाओं में फल पौधों की आपूर्ति राज्य की पंजीकृत नर्सरियों से होना दर्शाया जाता है किन्तु वास्तविकता यही है कि अधिकतर निम्न स्तर की शीतकालीन फलपौध हिमाचल व कश्मीर तथा बर्षाकालीन फल पौध सहारनपुर या मलीहाबाद लखनऊ की व्यक्तिगत नर्सरियों से ही होती है जिनकी खरीद राज्य की पंजीकृत पौधशालाओं से दिखाया जाता है।

उद्यान विकास से ही इस पहाड़ी राज्य का आर्थिक विकास संभव है इसी निमित्त भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने उत्तर प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री के कार्य काल में पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का सपना देखा व उसे वास्तविक रूप से धरातल पर उतारने के लिये रानीखेत में सन् 1953 में माल रोड़ रानीखेत (अल्मोड़ा) में किराए के भवनों में उद्यान विभाग का निदेशालय फल उपयोग विभाग उत्तर प्रदेश रानीखेत की स्थापना की । डाॅ0 विक्टर साने इसके पहले निदेशक बने लम्बे समय तक समस्त उत्तर प्रदेश का उद्यान निदेशालय रानीखेत रहा।सन् 1988 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्यान निदेशालय का भवन चैबटिया में बनाने का निर्णय लिया और सन् 1992 में उद्यान भवन चौबटिया रानीखेत में बन कर तैय्यार हुआ।

बर्ष 1990 में निदेशालय का नाम “उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उत्तर प्रदेश” कर दिया गया।राज्य बनने से पूर्व उद्यान निदेशालय, उद्यान भवन, चौबटिया रानीखेत से संचालित होता था राज्य बनने के बाद धीरे धीरे सभी बरिष्ट अधिकारियों के पद देहरादून सम्बन्ध कर दिए गए। निदेशालय को पूरी तरह सर्किट हाउस देहरादून सिफ्ट करने के प्रयास कार्यवाहक निदेशकों द्वारा समय समय पर किए जाते रहे हैं।

राज्य बनने पर आस जगी थी कि अपने राज्य की सरकारें पुरखौ के रखे राज्य में उद्यान विकास की आधारशिला को यहां के बागवानौ के हित में उन्नति के पथ पर आगे बढायेंगें लेकिन आज उद्यान विकास की पुरखौती की रखी यही आधार शिला बन्द होने के कगार पर है।

बिडम्बना देखिये राज्य बने चौबीस बर्षौं में भी उद्यान विभाग को स्थाई निदेशक नहीं मिला राज्य बनने से अबतक 14 से अधिक कार्य वाहक निदेशक एक या दो बर्षौ के लिए बने जो अपना सेवा विस्तार बढ़ाने के चक्कर में हुक्मरानों को खुश करने में ही रहे, उसी का दुषपरिणाम है कि आज अधिकतर आलू फार्म, औद्यानिक फार्म, फल शोध केंद्र बन्द हो चुके हैं या बन्द होने के कगार पर है ।

एक समय था जब उद्यान विभाग फल पौध,सब्जी बीज, आलू बीज के उत्पादन में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि उच्च गुणवत्ता के सेब आड़ू प्लम खुवानी नाशपाती की फल पौध अन्य राज्यों को भी देता था वर्तमान में पहाड़ी जनपदों की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों विभाग की उपेक्षा के कारण समाप्त हो रही है। सेब ग्राफ्ट बाधाने हेतु ऊंचे दामों पर सेब के बीजू पौधे भी राज्य की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों की अनदेखी कर काश्मीर से मंगाये जा रहे हैं।

योजनाओं में कृषकों को निवेशों पर मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से कृषकों के खाते में डालने के बजाय अधिकतर निम्न स्तर के निवेश उच्च दामों में निजी कम्पनियों या दलालों के माध्यम से अन्य राज्यों से क्रय कर कृषकों को बांटे जा रहे हैं। उद्यान विकास द्वारा राज्य को आत्मनिर्भर बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।

उद्यान विभाग का घोटालों से पुराना नाता रहा है जो बदस्तूर जारी है ।विगत वर्षों में कई घोटाले उजागर हुए सूखा राहत,मटेला कोल्ड स्टोरेज जो बेनी प्रकरण के नाम से चर्चित रहा, सब्जी बीज घोटाला, पौली हाउस घोटाला,अदरक बीज घोटाला, लहसुन बीज घोटाला आदि इस सब घोटालों की जांच हुई अनियमिताएं पाई गई कार्रवाई के नाम एक दो अधिकारी कर्मचारीयों को कुछ समय के लिये निलंबित भी कये गये किन्तु बाद में सभी को दोषमुक्त करते हुए फूल माला पहनाकर समय पर सेवा निवृत्त कर दिया गया।

अब सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या इसमें लिप्त शासन प्रशासन के बड़े अधिकारियों पर भी कार्रवाई होगी ये तो कुछ समय बाद ही पता चल पाएगा कि किस पर कार्रवाई होती है या नहीं। विभाग में फालदार पौधों की खरीद में हुए घोटाले ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कितनी आवश्यकता है। उच्च न्यायालय और सीबीआई की सख्ती से यह उम्मीद की जा सकती है कि दोषियों को सजा मिलेगी और इस प्रकार के घोटाले भविष्य में नहीं होंगे। याचिकाकर्ताओं की सतर्कता और न्यायालय की सख्ती ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर किया है, जिससे जनता का सरकारी तंत्र में विश्वास बना रह सके।


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