विजय दिवस 2020: कयामत तक सपना ही रहेगा पाकिस्तान की चाय, नाश्ता और खाने की ये हसरतें, जानें पूरी कहानी
1971 के युद्ध को पाकिस्तान ताउम्र नहीं भूल पाएगा। इस युद्ध के दौरान पाक सेना ने जैसलमेर के लोंगेवाला को कब्जे में लेने की योजना बनाई थी। दुश्मन पाकिस्तान लोंगेवाला के रास्ते जैसलमेर, जोधपुर पर कब्जा जमाने की योजना बना रहा था, लेकिन भारतीय रणबांकुरों ने लोंगेवाला में ही दुश्मन देश के दांत खट्टे कर दिए।
पाकिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने एलान किया था कि ‘इंशाअल्लाह हम नाश्ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा।’ यानी पाकिस्तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर एक दिन में भारत के सरहद की लकीरें बदलना चाहते थे लेकिन पाकिस्तान का ये सपना आज तक सपना ही और कयामत तक सपना ही रहेगा।
भारत-पाक के बीच छिड़ी पूरी जंग का आखिरी दिन था 5 दिसंबर 1971। 4 दिसंबर की रात को भारत पाकिस्तान के रहीमयार खान डिस्ट्रिक्ट क्वार्टर पर अटैक करने वाला था। किन्हीं वजहों से भारत अटैक नहीं कर पाया, पर बीपी 638 पिलर की तरफ से आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान ने भारत की लोंगेवाला चेकपोस्ट पर अटैक कर दिया।
यहां से उनका जैसलमेर जाने का प्लान था। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक पिलर लगा था, जो यहां पर भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का पहचान था, लेकिन इसे हिंदुस्तानी सरहद में घुसने के साथ ही पाकिस्तानी सैनिक इसे उखाड़ कर आगे बढ़ने का प्लान बना रहे थे।
थार रेगिस्तान में लड़ी गयी लोंगेवाला की इस लड़ाई के दौरान 23 वीं पंजाब रेजीमेन्ट के 120 भारतीय सिपाहियों की एक टोली ने पाकिस्तानी सेना के दो से तीन हज़ार फौजियों के समूह को धूल चटा दी थी। दरअसल 1971 की भारत पाकिस्तान लड़ाई सीमा का पूर्वी हिस्से पर पकड़ कमजोर होने के कारण हुई।
हिंदुस्तान फतह का ख्वाब संजोए निकली पाकिस्तानी सेना की कोशिश यही थी कि भारत के पश्चिमी हिस्से में ज्यादा से ज्यादा इलाक़े को हड़प लिया जाए ताकि जब समझौते की नौबत आए तो भारत से पाकिस्तान के ‘नाज़ुक-पूर्वी-हिस्से’ को छुड़ावाया जा सके। लेकिन ये सपना चकनाचूर हो गया।
जैसे ही तीन दिसंबर को पाकिस्तानी वायुसेना ने भारत पर हमला किया, मेजर चांदपुरी ने लेफ्टीनेंट धरम वीर के नेतृत्व में बीस फौजियों की टोली को बाउंड्री पिलर 638 की हिफ़ाज़त के लिए गश्त लगाने भेज दिया। ये पिलर भारत पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था। इसी गश्त ने पाकिस्तानी सेना की मौजूदगी को सबसे पहले पहचाना था।
मेजर चांदपुरी ने बटालियन के मुख्यालय से संपर्क करके हथियार और फौजियों की टोली को भेजने का निवेदन किया । इस समय तक लोंगेवाला पोस्ट पर ज़्यादा हथियार नहीं थे । मुख्याल से निर्देश मिला कि जब तक मुमकिन हो भारतीय फौजी डटे रहें। लोंगेवाला पोस्ट पर पहुंचने के बाद पाकिस्तानी टैंकों ने फायरिंग शुरू कर दी।
इस दौरान भारतीय फौजियों ने भी पाकिस्तान के साठ में से दो टैंकों को उड़ाने में कामयाबी लेकर जाता दिया की संख्या और हथियारों में कम होने के बावजूद उनके हिम्मत को कोई हरा नहीं सकता। नतीजा भी दुनिया ने देखा। रात भर की जंग के बाद सुबह भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों के अचूक निशानों से लोंगेवाला को पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह बना डाला और देखते ही देखते पाकिस्तान के करीब 40 टैंक वहां दफन हो गए।