September 22, 2024

नजरियाः कुल जमा डेढ़-दो सौ लोगों के लिए कामधेनु बना उत्तराखण्ड

देहरादून। ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ ये कहावत हमने-आपने बड़े-बुजुर्गो से जब-तब सुनी होगी। लेकिन मौजूदा हालातों में ये कहावत उत्तराखण्ड की राजनीति पर सटीक बैठती है। उत्तराखण्ड में पांचवी दफा विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं। जिसको लेकर राजनीतिक दलों ने बड़े विचार मंथन के बाद अपने पार्टी उम्मीदवारों का ऐलान किया है। काफी इंतजार के बाद कांग्रेस ने भी शनिवार देर रात को उम्मीदवार की सूची जारी कर दी है। भाजपा पहले ही अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। हां भाजपा और कांग्रेस दोनों ने कुछ सीटों पर अभी उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं की है। जानकारी के अनुसार बचे हुए सीटों पर और मंथन किया जाना बाकी है।

दगी तोपों से फायर की कोशिश

फिलहाल भाजपा-कांग्रेस ने जो अभी तक टिकटों के बंटवारे के लिए मंथन किया उसका नतीजा प्रदेश के सामने हैं। कांग्रेस-भाजपा ने जिन भी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है उस पर एक बार सरसरी नजर डालना जरूरी हो जाता है। क्योंकि इन्हीं उम्मीदवारों पर प्रदेश के भविष्य की दशा और दिशा दोनों टिकी हुई है।

उत्तराखण्ड के पहले चुनाव से लेकर पांचवे चुनाव तक भाजपा-कांग्रेस की उम्मीदवारों की सूची में नजर डाले तो कमोबेश वे वहीं चेहरे हैं। आठ-दस चेहरों को छोड़ दे तो वहीं चेहरे है जो पिछले 20 सालों से हर बार जनता के सामने विकास के लिए वोट मांगने आये है। ये बात अलग है कि इनमें कुछ चेहरे पिछली दफा किसी दूसरे चुनाव चिन्ह के साथ रहे होंगे। हो सकता है कि इन चेहरो के अभिभावक रहे होंगे। ये वो जाने-माने 140-150 चेहरे है जिन्होंने प्रदेश की राजनीति में एकछत्र अधिकार किया हुआ है।

सड़क स्कूल, अस्पताल का इंतजार

20 वर्षों के इस सफ़र में उत्तराखंड अब भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। चारधाम मार्ग पूरी गति के साथ बन रहा है लेकिन गांव अब भी सड़क का इंतज़ार कर रहे हैं। हालत ये है कि सड़क न होने से गांव और अस्पताल की दूरी तय करने में इतना समय गुजर जाता है कि गर्भवती महिला सड़क पर बच्चे को जन्म देती है। ये स्थिति अब भी है। कई बार इन्हीं हालात में इन माओं की मौत हो जाती है। बीमार-बुजुर्ग कुर्सी या चारपाई पर अस्पताल ले जाए जाते हैं। गांव के पास अच्छे स्कूल नहीं हैं तो मां-बाप गांव के चार कमरों का घर छोड़ महानगरों में एक कमरे में गुज़ारा करते हैं। ताकि वो अपने बच्चों को पढ़ा सकें।

गुरबत में है सौणू-बैसाखू

उत्तराखण्ड में इन दिनों सियासी पार्टियां बदलाव और विकास के नारे लेकर उतरे हैं। वो बदलाव और विकास जो इन सियासी दलों के नुमाइंदे पिछले 20 सालों में नहीं कर पाये हैं। प्रदेश की हालातों पर आम आदमी पार्टी के नेताअमेन्द्र बिष्ट कहते हैं कि ‘प्रदेश के हालात अभी भी वहीं हैं जो बीस साल पहले थे। पलायन और बेरोजगारी चरम पर है। भाजपा और कांग्रेस के नेताओं का विकास जरूर हुआ है। उन्होंने देहरादून में बड़ी-बड़ी कोठियां बना ली है। लेकिन गांव के गरीब सौणू-बैसाखू आज भी गुरबत में जी रहा है।

70 विधायकों के लिए बना प्रदेश?

उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी और सीपीआई-एमएल के नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं “बीस सालों का ये राज्य हो गया। जिन सपनों जिन आकांक्षाओं के साथ इस राज्य की स्थापना की गई थी। आज वो सारी की सारी धराशायी हो गई। ये विचार करने का समय है कि राज्य क्या सिर्फ 70 विधायक बनाने के लिए बना था? राज्य एक मुख्यमंत्री बनने के लिए बना था? जिस कुर्सी के लिए लगातार मार मची रहेगी। खींचतान बनी रहेगी। क्या 11 मंत्री बनाने के लिए राज्य बना था? आज ये विचार करने का सवाल है।

व्यवस्था बदलाव जरूरी

उत्तराखण्ड के एक जाने माने पत्रकार उत्तराखण्ड के हालातों पर कहते हैं कि उत्तराखण्ड कुल जमा डेढ़-दो सौ लोगों के लिए कामधेनु बना हुआ है, जो बारी-बारी से सत्ता-सुख भोग रहे हैं। यदि उत्तराखण्ड में व्यवस्था को बदलना है तो सबसे पहले यहां व्यवस्था पर कब्जा जमाये व्यवस्थापकों को बदलना होगा। लोकतंत्र में व्यवस्था बदलने की चाभी जनता के हाथों में होती है। अब ये प्रदेश की जनता को तय करना होगा की वे वहीं पुरानी व्यवस्था चाहते है या इसमें बदलाव चाहते हैं।


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