व्यक्ति विशेष: जब सूचना विभाग से बिचौलिये हुए खत्म, तब विज्ञापनों में आई पारदर्शिता
हेमंत जोशी
देहरादून: भारत के किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री बदलते ही उस राज्य के अधिकारियों का स्थानांतरण भी आम बात है। हर मुख्यमंत्री अपने हिसाब से अधिकारियों के कार्यक्षमता के अनुसार उनका स्थानांतरण करते हैं।उत्तराखंड में भी मुख्यमंत्री बदलते ही अधिकारियों का स्थानांतरण शुरु हो गया है। चाहे शैलेश बगोली का सचिव मुख्यमंत्री बनना हो या फिर राधिका झा का इस पद से हटना। लेकन प्रदेश में कुछ ईमानदार अधिकारियों के स्थानांतरण के बाद कुछ चंद लोग उनके कार्य क्षमता पर भी सवाल उठा देते हैं। इसी का एक उदाहरण आजकल पूर्व सूचना महानिदेशक डा० मेहरबान सिंह बिष्ट को लेकर दिखाई दे रहा है।
ईमानदार और बेदाग छवि वाले सूचना महानिदेशक डा० मेहरबान सिंह बिष्ट का सूचना विभाग से स्थानांतरण हो गया है। रणवीर सिंह चैहान नये सूचना महानिदेशक नियुक्त किये गये है। शासन-प्रशासन में अधिकारियों का एक विभाग से दूसरे विभाग में फेरबदल व्यवस्था एक बड़ा हिस्सा है। लेकिन डीजी के तौर पर सूचना विभाग से डा० मेहरबान सिंह बिष्ट की इस रुटीन बदली को लेकर एक खास तबका सोशल मीडिया में सक्रिय हो गया है। ये खास तबका सोशल मीडिया में डा० मेहरबान बिष्ट के खिलाफ मुहिम चलाने में लगा है। और उनकी बेदाग छवि को दागदार करने में तुला हुआ है।
सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग सरकार के बड़े एवं अहम विभागों में आता है। सरकारी योजनाओं और तमाम कार्यक्रमों का आम जन मानस तक प्रसार-प्रसार का पूरा जिम्मा इस विभाग का होता है। पिछली त्रिवेन्द्र सरकार के दौरान ईमानदार और बेदाग छवि के अफसर मेहरबान सिंह बिष्ट को सूचना विभाग मे बतौर डीजी तैनाती मिली।
सूचना विभाग में काम-काज संभालने के बाद डा० बिष्ट ने विज्ञापनों में बिचैलियों के खेल का खात्मा किया। पहले एजेंसियों के जरिए सरकारी विज्ञापन संचार माध्यमों को दिए जाते थे। जिसमें 15 प्रतिशत कमीशन इन विज्ञापन एजेंसियों को जाता था।
डा० मेहरबान सिंह बिष्ट ने विज्ञापन एजेंसियों की व्यवस्था को खत्म किया और विज्ञापन सीधे संचार माध्यमों को पारदर्शी माध्यम से जारी किया। जिससे एक तरफ सरकारी धन की बचत की वहीं इन एजेंसियों के भेष में विज्ञापन माफियाओं पर भी चोट की। इस फैसले से सूचना निदेशालय में बिचैलियों और ब्लैकमैलरों का दाना-पानी उठ गया।
डा० मेहरबान सिंह का ये फैसला दलालों और माफियाओं को नागवार गुजरा और कुंठित होकर ये पूर्व डीजी सूचना मेहरबान सिंह बिष्ट के खिलाफ सोशल मीडिया और दूसरे तरीके से उनकी छवि को दागदार करने के लिए अभियान चलाने लगे।
अभी हाल ही में व्यवस्था के तहत डा० मेहरबान सिंह बिष्ट का तबादला सूचना निदेशालय से हो गया है। और नये डीजी सूचना के तौर पर रणवीर सिंह ने कार्य भार संभाला है। लेकिन उनके इस रुटीन तबादले को दलालों का ये दल सोशल मीडिया पर आधे-अधूरे सबूतों के आधार पर उनको भ्रष्ट अधिकारी साबित करने में तुला हुआ है।
हाल के दो दिन से एक खबर सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है। खबर सूचना विभाग द्वारा न्यूज चैनलों को जारी विज्ञापनों को लेकर है। लिखा जा रहा है कि एक एक खास चैनल को इतनी रकम के विज्ञापन दिए गए। ये तथाकथित फेसबुकिये समझाने की कोशिश कर रहे है कि जैसे इस चैनल को नियम कायदों को ताक पर रखकर सबसे ज्यादा रकम के विज्ञापन जारी किए गए हों। जबकि वास्तव में ऐसा है है नहीं। सभी चैनलों, अखबारों और दूसरे संचार माध्यमों को एक पारदर्शी व्यवस्था के जरिये विज्ञापन जारी किये गये है।
तथाकथित दलाल फेसबुक के जरिये ऐसा प्रचारित करने की कोशिश कर रहे हैं कि बतौर डीजी मेहरबान सिंह बिष्ट ने सिर्फ एक ही चैनल को विज्ञापन जारी किया है। उत्तराखंड सूचना विभाग में 25 न्यूज चैनल सूचीबद्ध हैं जिनको विभाग समय समय पर सरकारी उपलब्धियों और योजनाओं से सम्बन्धित विज्ञापन जारी करता है। सूचना विभाग में पारदर्शी व्यवस्था के तहत इन चैनलों के लिए विज्ञापन जारी करता है।
चैनलों के लिए विज्ञापन दर भी पारदर्शी व्यवस्था से तय किये जाते हैं। इस व्यवस्था के आधार पर सभी चैनलों के उनके प्रसार के हिसाब से अलग-अलग रेट तय हैं। उत्तराखंड सूचना विभाग में न्यूज 18 और नेपाल 1 चैनल को 1200 रुपये प्रति 10 सेकंड के हिसाब से विज्ञापन जारी होते हैं, बाकी तमाम चैनल्स को 800 रुपये प्रति 10 सेकंड के हिसाब से होते हैं।
अब सवाल ये उठता है कि जब पारदर्शी व्यवस्था के तहत सभी चैनलों को विज्ञापन जारी किये गये है तो सिर्फ एक चैनल के विज्ञापनों पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?
उत्तराखड में तमाम छोटे-बड़े अखबार भी प्रकाशित होते हैं। इन अखबारों को भी सूचना विभाग की ओर से विज्ञापन जारी किये जाते हैं। लेकिन ये फेसबुकिये दलाल इसका जिक्र कहीं नहीं करते। सभी जानते हैं कि सबसे ज्यादा विज्ञापन अखबारों को ही जारी किये जाते हैं। सवाल यहां यह भी उठता है कि उत्तराखण्ड का हितैषी बताने वाले ये फेसबुकिये अखबारों को जारी विज्ञापनों पर भी सवाल क्यों नहीं उठाते?
मकसद साफ है ये फेसबुकिये आधी-अधूरी और मनगढ़त कहानी बनाकर डा० मेहरबान जैसे ईमानदार अफसरों को बदनाम करना चाहते हैं। क्योंकि इनके दलाली के खेल में डा० मेहरबान सिंह जैसे अफसर रोड़ा बने हुए हैं।
ये फेसबुकिया पत्रकार आज से नहीं, पिछले 8 सालों से प्रदेश में सक्रिय हैं। इनके निशाने पर ईमानदार अफसर हैं खासकर पहाड़ी अफसर। ये अच्छी तरह जानते हैं कि सरकारी विभाग का मुखिया ईमानदार अफसर बना तो इनकी दलाली की दाल नहीं गलने वाली। लिहाजा ये ऐसे अफसरों को लगातार निशाने पर रखते हैं और उनकी छवि को खराब करने को हर मुमकिन जतन करते हैं। ईमानदार अफसर मेहरबान सिंह को बदनाम करने की साजिश भी इनकी इस मुहिम का हिस्सा है।