कहां हो निष्ठुर धर्मरक्षको, तुम्हें जोशीमठ पुकार रहा है।
– आदि गुरु शंकराचार्य का ज्योतिर्मठ खतरे में, मदद की दरकार
– अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पर चंदे के दुरुपयोग का केस
गुणानंद जखमोला
जोशीमठ और आदि शंकराचार्य का ज्योतिर्मठ खतरे में है। कल्पवृक्ष के पास के मंदिर में दरारें बताई जा रही हैं। यहां पहले ही दो मठ बने हुए हैं। मठों की एक अलग की कहानी है। लेकिन मठ, धर्म, सम्प्रदाय और जातियां तो तब गिनी जाएंगी, जब जीवन होगा, जीवन बचेगा।
जोशीमठ मर रहा है, लेकिन वहां धर्म ध्वजा लेकर राजनीति करने और वोट बटोरने वाले सभी सभाएं, परिषद और दल गायब हैं। विपदा की घड़ी में जब जोशीमठ के 25 हजार लोगों को सहारे की, मदद की और उनके आंसुओं को पोंछने की दरकार है।
धर्म पताका फहराने वाले सनातनी और हिन्दू धर्म के रक्षक गायब हैं। वहां एक अकेला कम्युनिस्ट अतुल सती ही सड़क पर जनहित की लड़ाई लड़ता नजर आ रहा है।
यह बात इसलिए बता रहा हूं कि ये धर्मरक्षक अब आनंदमठ जैसे मतवालों के अखाड़े नहीं हैं जो कि देश के लिए मर-मिटे।
यदि ऐसा होता तो इन मठो के दरवाजे और धन की पोटलियां जोशीमठ के हिन्दुओं को बचाने के लिए खुल जाती, लेकिन यहां तो अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष पर ही चंदा चोरी का आरोप है।
क्या उम्मीद करें इनसे? अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्रपुरी और ट्रस्टी अनिल शर्मा सहित कई ट्रस्टियों के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज किया गया है।
आरोप है कि चंदे का निजी उपयोग करने के साथ ही रसीदों पर फोटो लगाकर धोखाधड़ी की जा रही है। हरिद्वार नगर कोतवाली पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है।
मैं बता दूं श्रीमहंत रवींद्र पुरी का जीवन पीएम मोदी से भी अधिक शानो-शौकत वाला है। हरिद्वार कुंभ की तैयारियों को लेकर मैं उनसे मिला, लेकिन उन्होंने मुझे इंटरव्यू देने के लिए एक घंटे इंतजार करने को कहा, कि तत्कालीन कैबिनेट मिनिस्टर मदन कौशिक उनसे मिलने आ रहे हैं।
एक धर्म ध्वजारोहक के लिए कैबिनेट मिनिस्टर क्या और एक आम पत्रकार क्या? मैं ठहरा अकड़ू पत्रकार। मैंने इंतजार करने से बेहतर रवींद्र पुरी के यहां से बिना इंटरव्यू किये निकलना बेहतर समझा।
इन अखाड़ों की ऊंची अट्टालिकाओं में कई राज दफन हैं। इनके पर्दाफाश करने में धर्म आड़े आता है। धर्म, राजनीति और अपराधियों का गठजोड़ नई बात नहीं है।
जब अखाड़ों के हितों की बात होती है तो हरिद्वार से लेकर काशी तक और सड़क से लेकर संसद तक हंगामा होता है, लेकिन जब हिन्दू और सनातन धर्म के अनुयायियों का जीवन खतरे में है तो सब अखाड़े, साधु- संन्यासी, धार्मिक नेता, प्रवचक और धर्म की राजनीति करने वाले नेता सब अपनी कोठियों में मुंह ढककर सो रहे हैं। कहीं कोई आवाज नहीं है।
जोशीमठ को आज दुआओं के साथ ही मदद की भी दरकार है। जिन लोगों के कई मंजिला भवन हैं, वह दोबारा बना लेंगे, लेकिन जिन्होंने हाड़-तोड़ मेेहनत से जीवन भर की पूंजी एक छोटे से आशियाने को बनाने में खर्च कर दी, उनका हाल कैसा होगा? उनके इन्तहा दर्द की कौन खबर लेगा?
जीवन भर के दुख-सुख जिस आशियाने के नीचे बिताए, उनके आंसुओं का हिसाब कौन देगा?
हो सके तो हिन्दू धर्म के रक्षकों से निवेदन है कि वह आगे आएं, जोशीमठ के हिन्दुओं की मदद करें।
कम से कम उनके आंसू तो जरूर पोंछे। एक बार जोशीमठ तो पहुंचे। सभी से अनुरोध है कि जोशीमठ के लोगों को इस संकट से उबरने में मदद के लिए यथासंभव मदद और दुआ करें।