आठ साल में 40 फीसदी महंगा हुआ गेहूं-आटा, जानें निर्यात पर रोक के बाद घटा या बढ़ा इनका दाम

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अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती कीमतों की वजह से निजी व्यापारियों ने जमकर गेहूं की खरीद की। पंजाब-हरियाणा में कम आवक के कारण मौजूदा सत्र में एक मई तक सरकार की गेहूं खरीद 44 फीसदी घटकर 162 टन रह गई।
गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों के बीच सरकार ने बीते शनिवार को इसके निर्यात पर रोक लगा दी। दो दिन बाद ही सरकार ने गेहूं की सरकारी खरीद की तारीख बढ़ा दी। रोक के तीन दिन बाद यानी मंगलवार को इस बैन में ढील का भी एलान हो गया।

सरकार के इन फैसलों से गेहूं की कीमतें कम होने की उम्मीद जताई गई। इसके साथ ही सरकारी खरीद की तारीख बढ़ाने के फैसले को सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। बता दें कि भारत गेहूं उत्पादन के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। सरकार इस कदम को देश की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए लिया गया फैसला बता रही है।

सरकार के एलान के बाद गेहूं-आटे के दाम कितने घटे?

सरकार ने 13 मई को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध का आदेश दिया। उस दिन गेहूं 29.62 रुपये किलो तो आटा 33.14 रुपये किलो था। उससे पहले हर दिन गेहूं और आटे के दाम बढ़ रहे थे। सरकार के एलान के अगले ही दिन दामों में करीब एक रुपये की कमी आई। 14 मई को खुदरा बाजार में गेहूं 28.46 रुपये किलो हो गया तो आटा 32.49 रुपये किलो हो गया। हालांकि, इसके बाद अगले ही दिन से दाम फिर से बढ़ने लगे। 19 मई को गेहूं और आटे के दाम 13 मई के दाम के स्तर पर पहुंच गए।

आज से आठ साल पहले मई 2014 में खुदरा बाजार में आटा 23 रुपये किलो तो गेहूं 21.42 रुपये किलो बिक रहा था। पांच साल बाद 2019 में आटा 28.11 रुपये किलो तो गेहूं 26.63 रुपये किलो हो चुका था। यानी, पांच साल में आटे के दाम में 22 फीसदी तो गेहूं के दाम में 24 फीसदी का इजाफा हुआ। बीते तीन साल की बात करें तो आटा 33.14 रुपये किलो तो गेहूं 29.92 रुपये किलो हो चुका है।
तीन साल में आटे के दाम में करीब 18 फीसदी तो गेहूं के दाम में 12 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। बीते आठ साल की बात करें तो आटे की कीमतें 44 फीसदी बढ़ चुकी हैं। वहीं, खुदरा बाजार में गेहूं के दाम में भी आठ साल में भी करीब 40 फीसदी का इजाफा हुआ। यहां तक कि अप्रैल में खुदरा बाजर में गेहूं की कीमतें 32.38 रुपये किलो पहुंच गईं थीं। ये पिछले 12 साल में रिकॉर्ड स्तर है।

गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं होने की बात भी आ रही है उसका क्या?

गेहूं की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती कीमतों की वजह से निजी व्यापारियों ने जमकर गेहूं की खरीद की। पंजाब-हरियाणा में कम आवक के कारण मौजूदा सत्र में एक मई तक सरकार की गेहूं खरीद 44 फीसदी घटकर 162 टन रह गई है। वहीं, निजी कंपनियों ने अधिक कीमत पर गेहूं खरीदा। वहीं, 2021-22 में भारत का गेहूं निर्यात बढ़कर 70 लाख टन यानी 2.05 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचा।

रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद दुनियाभर में गेहूं की कीमतों में 40 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले गेहूं और जौ के निर्यात में इन दो देशों की एक-तिहाई हिस्सेदारी थी। इस युद्ध का असर पूरी दुनिया में गेहूं की कीमतों पर पड़ा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं का निर्यात 2,575 रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 2610 रुपये क्विंटल में हो रहा है, जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,015 रुपये है।

सरकार के फैसले पर देश में क्या हैं अलग-अलग पक्षों के तर्क?

 मिल संगठन-किसान संगठन

आटा मिलों के संगठन रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने सरकार के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का स्वागत किया। सगंठन ने कहा कि इससे मूल्य वृद्धि को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। वहीं, किसान संगठन भारत कृषक समाज गेहूं निर्यात पर पाबंदी से नाखुश है। उसका कहना है कि ये पाबंदी किसानों के लिए एक अप्रत्यक्ष कर की तरह है। संगठन का कहना है कि इस फैसले से किसान ऊंची वैश्विक कीमतों का लाभ नहीं उठा सकेंगे।

 राजनीतिक दल

राजनीतिक दलों की बात करें तो कांग्रेस ने निर्यात पर प्रतिबंध को किसान विरोधी करार दिया। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि ऐसा नहीं है कि गेहूं की पैदावार कम हुई है। मेरा मानना है कि केंद्र सरकार पर्याप्त गेहूं खरीदने में विफल रही है। मुझे हैरानी नहीं है, क्योंकि यह सरकार कभी भी किसान हितैषी नहीं रही है। उन्होंने कहा कि अगर पर्याप्त खरीद हो गई होती तो गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।

जी-7, अमेरिका, चीन और बाकी देश

भारत के कदम पर सात औद्योगिक देशों के समूह जी-7 की ओर से जर्मन कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने स्टटगार्ड में कहा कि अगर हर देश निर्यात रोक देगा या बाजार बंद करने लगेगा तो संकट और गहरा जाएगा। दूसरी तरफ चीन ने भारत के फैसले का बचाव किया। उसने कहाकि भारत जैसे विकासशील देशों को दोष देने से वैश्विक खाद्य संकट का समाधान नहीं होगा। जबकि, संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने आशंका जताई है कि भारत के कदम से विश्व में खाद्य संकट बढ़ सकता है।