भारत में ही सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण क्यों? जानिए वजह और सरकार की नीतियां
दुनिया में सबसे ज्यादा प्लास्टिक का इस्तेमाल भारत में होता है. इसके परिणामस्वरूप प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या बहुत गंभीर हो गई है. नेचर नाम की मैगजीन की पब्लिश एक नई रिसर्च रिपोर्ट में पता चला है कि भारत दुनिया के प्लास्टिक प्रदूषण का पांचवें हिस्से का योगदान देता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत हर साल करीब 58 लाख टन प्लास्टिक जला देता है. इसके अलावा, भारत हर साल 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा भी जमीन, हवा और पानी में फैला देता है. कुल मिलाकर, भारत हर साल दुनिया भर में 93 लाख टन प्लास्टिक प्रदूषण का योगदान करता है. यह चिंताजनक है क्योंकि प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक होता है.
भारत के बाद दूसरे नंबर पर नाइजीरिया है, जो हर साल 35 लाख टन प्लास्टिक प्रदूषण करता है. इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है, जो 34 लाख टन प्लास्टिक प्रदूषण करता है. चीन 28 लाख टन प्लास्टिक प्रदूषण के साथ चौथे नंबर पर है. प्लास्टिक प्रदूषण न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि यह मानव शरीर पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकता है. प्लास्टिक के छोटे छोटे कण, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स कहा जाता है अब मानव शरीर में भी पाए जा रहे हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण: उत्तर और दक्षिण में बड़ा अंतर
प्लास्टिक कचरे का पर्यावरण पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कैसे प्रबंधित किया जाता है. अध्ययन के अनुसार, हर साल दुनिया में लगभग 251 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है. जब प्लास्टिक कचरे का सही प्रबंधन नहीं किया जाता, तो यह पर्यावरण में प्रदूषण का कारण बनता है. दुनिया में कचरा प्लास्टिक का 10% हिस्सा ही रिसाइकल किया जाता है.
दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण के मामले में उत्तर और दक्षिण के देशों में बड़ा अंतर है. अध्ययन के अनुसार, दुनिया के कुल प्लास्टिक प्रदूषण का लगभग 69% (या हर साल 35.7 मिलियन टन) सिर्फ 20 देशों से आता है. इनमें से कोई भी देश अमीर देश नहीं है. अमीर देशों की लिस्ट में शामिल देशों को वर्ल्ड बैंक के अनुसार पर कैपिटा जीडीपी 13,846 डॉलर या उससे ज्यादा होना चाहिए.
हालांकि, ये अमीर देश सभी उत्तर के देश हैं, दक्षिण के देशों की तुलना में प्लास्टिक कचरा ज्यादा पैदा करते हैं. फिर भी, इनमें से कोई भी अमीर देश दुनिया के सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण करने वाले 90 देशों में शामिल नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन देशों में 100% कचरा संग्रह किया जाता है और इसका सही तरीके से निपटारा किया जाता है.
गरीब देशों में प्लास्टिक जलाना बड़ी समस्या
अध्ययन के अनुसार, दुनिया के गरीब देशों में प्लास्टिक प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण प्लास्टिक को जलाना है. अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से के कुछ देशों को छोड़कर, यहां के देशों में प्लास्टिक कचरा जलाना सबसे बड़ी समस्या है. अमीर देशों में प्लास्टिक कचरा फैलना सबसे बड़ी समस्या है. दोनों ही स्थितियां दिखाती हैं कि इन देशों में कचरा प्रबंधन की सुविधाएं अच्छी नहीं है.
इंडोनेशिया में आधे से ज्यादा प्लास्टिक कचरा जला दिया जाता है. केवल 5% प्लास्टिक कचरा ही सही जगह पर फेंका जाता है. दुनिया भर के समुद्र में फैलने वाला प्लास्टिक कचरा ज्यादातर फिलीपींस, भारत, मलेशिया और इंडोनेशिया से आता है.
बहुत सारा प्लास्टिक कचरा अमीर देशों से गरीब देशों में भेजा जाता है. इससे गरीब देशों में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ता है. चीन ने 2018 में प्लास्टिक कचरा आयात करने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इससे प्लास्टिक कचरा दूसरे देशों में भेजा जाने लगा. यूरोपीय संघ ने भी प्लास्टिक कचरा दूसरे देशों में भेजने पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है. इससे अपने देश का कचरा अपने देश में ही प्रबंधित करने की जिम्मेदारी देशों पर होगी.
भारत में सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण का कारण
भारत की बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के कारण प्लास्टिक की खपत लगातार बढ़ रही है. लोग अब ज्यादा से ज्यादा प्लास्टिक के प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे प्लास्टिक कचरे की मात्रा भी बढ़ रही है. भारत में कचरे के प्रबंधन की व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं है. ज्यादातर कचरे को खुले में फेंक दिया जाता है या अनियंत्रित डंपिंग साइटों पर डाला जाता है. इससे प्लास्टिक का कचरा पर्यावरण में फैल जाता है.
भारत सरकार का दावा है कि देश में 95% से अधिक कचरा एकत्र किया जाता है, लेकिन वास्तविकता में यह आंकड़ा 81% के आसपास ही है. इसका मतलब है कि बहुत सारा कचरा अभी भी एकत्र नहीं किया जा रहा है और पर्यावरण में फैल रहा है. हर साल लाखों टन प्लास्टिक को जलाया जाता है. इससे हवा और पानी प्रदूषित होता है और स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा होता है.
इसके अलावा, बहुत सारा प्लास्टिक कचरा अनौपचारिक तरीके से रिसाइकिल किया जाता है. इस प्रक्रिया में कई बार हानिकारक रसायन का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है. थैले, बोतलें, कप आदि जैसे एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का अत्यधिक इस्तेमाल भी प्लास्टिक प्रदूषण का एक बड़ा कारण है.
प्लास्टिक कचरे का सही तरीके से प्रबंधन क्यों जरूरी
प्लास्टिक कचरा नदियों और नालों को बंद कर देता है जिससे बाढ़ के हालात जैसा खतरा बनता है. समुद्र में भी प्लास्टिक कचरा पहुंच जाता है जिससे समुद्री जीवों को नुकसान होता है. प्लास्टिक को जलाने से हवा में जहरीले पदार्थ निकलते हैं. प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े पानी और खाने में मिल जाते हैं, जिससे लंबे समय में स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं.
प्लास्टिक कचरा बीमारियों को फैलाने वाले जीवों के लिए भी जगह बन जाता है जिससे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
भारत में प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन से संबंधित कानून
भारत सरकार ने प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए कई नियम कानून बनाए हैं. इन नियमों का उद्देश्य प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन को बेहतर बनाना है.
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016: इस नियम के अनुसार, हर स्थानीय निकाय को प्लास्टिक कचरे को अलग करना, इकट्ठा करना, प्रोसेस करना और निपटाने के लिए व्यवस्था बनानी होगी.
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट (अमेंडमेंट) रूल्स 2018: इस नियम के अनुसार, कुछ खास तरह के प्लास्टिक बैगों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. ये बैग ऐसे हैं जिन्हें रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है या जिनका कोई दूसरा उपयोग नहीं है. कानून कहता है कि कंपनियों को अपने उत्पादों के कचरे का प्रबंधन खुद ही करना होगा. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने कंपनियों के लिए एक रजिस्टर्ड सिस्टम बनाया है.
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट (अमेंडमेंट) रूल्स 2021: इस नियम के अनुसार, कुछ एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. ये उत्पाद बहुत उपयोगी नहीं हैं और ज्यादा कचरा फैलाते हैं. इसके अलावा, प्लास्टिक बैगों की मोटाई बढ़ा दी गई है. सितंबर 2021 तक 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन कर दी गई. दिसंबर 2022 तक इसे 120 माइक्रोन कर दिया गया.
इन कानूनों के अलावा भारत सरकार और कई गैर-सरकारी संगठन प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए भी पहल कर रहे हैं. स्वच्छ भारत मिशन भारत को स्वच्छ बनाने का एक बड़ा अभियान है. इंडिया प्लास्टिक पैक्ट एक स्वैच्छिक समझौता है जिसमें कंपनियां, सरकार और गैर-सरकारी संगठन मिलकर प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए काम करते हैं. वहीं प्रोजेक्ट REPLAN एक परियोजना है जिसका उद्देश्य प्लास्टिक कचरे को कम करना और प्लास्टिक को रिसाइकिल करना है. गो लिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट एक ऐसा प्रोजक्ट है जिसका उद्देश्य कचरा फेंकने की आदत को बदलना और लोगों को कचरा अलग करने के लिए प्रेरित करना है.
सरकार या जनता में कौन जिम्मेदार?
सरकार ने प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए कई नियम बनाए हैं, लेकिन इन्हें सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है. कई बार नियमों का उल्लंघन होता है और जुर्माना भी नहीं लगता है या बहुत कम लगता है. दूसरा कई जगहों पर अवैध रूप से प्लास्टिक उत्पादन होता है, जिस पर कोई कार्रवाई नहीं होती है.
भारत में प्लास्टिक प्रदूषण के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. सरकार और जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा. सरकार को और प्रभावी नीतियां बनानी होंगी और उनका कड़ाई से पालन करना भी जरूरी है. वहीं, जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करना होगा और प्लास्टिक कचरे का सही तरीके से निस्तारण करना होगा.